
I am idealistic in my thoughts. I always maintained a safe distance to my boyfriend and we didn't even kiss each other for a year since our relationship started. Now, it was his birthday, and he was waiting for his gift in his friend's house, where we planned to meet.I got the best wallet that I could afford and nicely rapped it in a gift pack. After giving the gift, we sat talking about our friends, weather, college and every simple thing that we could recollect. We were shy or rather scared to talk out of the box, as we were not aware how the other would feel. Strange! I knew with his gestures what he was longing for.I knew I had to make the first move, as he was scared that I would slap him or break the relationship if he did that first. So, this is the story of the first kiss. I asked him to close his eyes, (as I couldn't even think of getting near him when his eyes were open) and kissed him gently on his eyes. Now, my macho man was stunned, excited rather puzzled with the whole situation. He didn't even know how to react.He went out of the room telling me that he just forgot something. Now I was in his shoes. I thought I misunderstood him and he was not ready for it. At that moment he walked in with a smile and said, 'thank you'. I had a sigh of relief. He then asked me to close my eyes. I thought it was my turn. Yes it was.First kiss, A feeling that will last forever The guys are smart; they utilize every move that we make. My boyfriend was not an exception. When I had closed my eyes, he softly kissed my lips. Guess what! The reaction was not the same. I had a hearty laugh. When I opened my eyes I found him standing in attention, looking at me, for my next move.Rather he was standing like a scared bird that would fly the very moment I would cry and say, "How dare you?" We still cherish the first touch, the first kiss, the first candle light dinner and every sweet moment that we spent together for five long years. This moment will be most treasured till the last breath, as it was the first and unique kiss, with a feeling that will last forever."

“रैविशिंग वूमन संस्था” का वार्षिक सम्मान समारोह प्रति वर्ष आयोजित किया जाता था.उस दिन नारी-शक्ति की प्रतीक एक महिला को उसकी उपलब्धियों, उसके संघर्ष और विजय आदि के आधार पर सम्मानित किया जाता था. संस्था की अध्यक्षा डॉ नंदिता नाथ ने अपने वक्तव्य में कहा-
“मुझे यह बताते हुए बहुत खुशी है कि इस वर्ष रैविशिंग वूमन के गौरवपूर्ण सम्मान के लिए हमारे सियाटेल नगर की शालिनी यादव को सम्मानित किए जाने का निर्णय लिया गया है, एक छोटे शहर मथुरा से आई सामान्य लड़की शालिनी ने अकेले अपने अदम्य साहस, धैर्य और आत्मविश्वास से अनेकों कल्पनातीत विषम परिस्थितियों पर अपने संघर्ष से विजय प्राप्त की है.
आज शालिनी ने अपने को न केवल अमरीका में स्थापित ही किया है बल्कि नारी-शक्ति को चरितार्थ किया है. हमें शालिनी यादव पर गर्व है. मै शालिनी जी को मंच पर आमंत्रित करती हूँ. स्थानीय मेयर महोदया से निवेदन है वह शालिनी जी को बुके देकर उनका स्वागत करने की कृपा करें
धीमे कदमों से मंच पर जाकर बुके लेती शालिनी के लिए तालिया गूँज उठीं, कैमरों से शालिनी का चित्र लेने की होड़ लग गई.जलपान के समय स्त्रियों ने शालिनी को घेर लिया. सब उसके संघर्ष की कहानी जानने को उत्सुक थीं,पर उतने कम समय में क्या शालिनी अपने वर्षों के जीवन- संघर्ष की कहानी सुना सकती थी?
घर वापिस आई शालिनी फ्लॉवर वाज़ में फूल सजाती वर्षों पुरानी यादों में खो गई. चित्र आँखों के सामने खुलते गए-
दुबई से राजीव के परिवार की पुराने शहर मथुरा में वापिसी से कॉलोनी की युवा पीढी का राजीव हीरो बन गया था. राजीव के आने की सबसे ज़्यादा खुशी शालिनी को हुई थी. बचपन से साथ खेलते दोनों ने एक साथ हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की थी. दोनों की मित्रता के उदाहरण दिए जाते थे. परिवार के साथ राजीव के दुबई जाने से शालिनी को अपने मित्र की कमी खलती थी. पड़ोसी होने के कारण शालिनी और राजीव के परिवारों में भी.में भी घनिष्ठता थी. वर्ष बीत गए थे अब राजीव एक मेधावी युवक बन कर वापिस आया था और शालिनी भी मितभाषी सौम्य युवती बन चुकी थी थी. सादगी और सच्चाई के कारण शालिनी सबको प्रिय थी. वापिस आने पर राजीव सबसे पाहिले शालिनी से मिलने गया, उसे देख शालिनी खिल उठी दोनों का आपसी स्नेह और मैत्री पूर्ववत थी.उनकी बातें खत्म ही नहीं होती थीं .
राजीव महत्वाकांक्षी युवक था, उसने अपने भविष्य के सपने पहले ही निर्धारित कर लिए थे, अब वह अमरीका से एम बी ए करने जाने वाला था.राजीव जब भी अमरीका के विषय में शालिनी को बताता, शालिनी सोचती काश कभी वह भी सपनों के देश अमरीका जा पाती. शालिनी भी आगरा यूनीवर्सिटी से होम इकोनोमिक्स में मास्टर्स करने के लिए प्रवेश ले चुकी थी. राजीव शालिनी से कहता-
“अगर तुम अमरीका जाना चाहती हो तो अमरीका जाने के पहले तुम्हें अपने को तैयार करना होगा.वहां की लाइफ बहुत फास्ट है. वहां की लडकियां हर क्षेत्र में लड़कों के समकक्ष ही नहीं कहीं कहीं –कहीं उनसे बहुत आगे हैं. अगर तुम अमरीका के विषय में पढो तो तुम्हें उनके मुकाबले अपने आप में और मथुरा शहर में बहुत कमियाँ ज़रूर नज़र आएंगी.”
“हमें डराओ नहीं, एक बात तुम नहीं जानते भारतीय लडकियां हर स्थिति और परिवेश में अपने को एडजस्ट कर लेती हैं. वैसे भी हम भला अमरीका कैसे जा सकते हैं.”मायूसी से शालिनी कहती.
“ऐसा क्यों सोचती हो, जहां चाह वहां राह, कोशिश करने से तुम्हारे सपने भी सच हो सकते हैं. मन में साहस और विश्वास हो तो क्या कुछ नहीं किया जा सकता.”
“थैंक्स राजीव, मास्टर्स पूरी करने के बाद हम ज़रूर कोशिश करेंगे तुम्हारे शब्दों से बहुत प्रेरणा मिली है, हमेशा याद रखूंगी. तुम्हारे लिए लिए हमारी शुभ कामनाएं.”अचानक राजीव की बातों ने शालिनी में एक नया उत्साह और आत्मविश्वास जगा दिया.
सबकी शुभ कामनाओं के साथ राजीव अमरीका चला गया.
पर कभी-कभी सपने भी सच हो जाते हैं.अचानक शालिनी के पापा के एक मित्र ने शालिनी के लिए एक रिश्ता बताया. अमरीका से अमर नाम का युवक भारतीय लड़की के साथ विवाह करने भारत आरहा था. आई आई टी से कम्प्यूटर इंजीनियरिंग करने के बाद अमर अमरीका में माइक्रोसॉट जैसी नामी कम्पनी में काम कर रहा है.उसका परिवार हरयाना के एक गाँव में ज़रूर रहता है,पर परिवार के सब बच्चे सुशिक्षित थे. शालिनी के परिवार वाले अमर के परिवार से मिलने उसके गाँव गए. शीघ्र ही अमर और उसके माता-पिता शालिनी से मिलने मथुरा आने वाले थे.
निश्चित दिन अमर अपने माता-पिताके साथ आगया था.धड़कते दिल के साथ शालिनी उसके सामने गई थी.अमर ने नरमी से पूछा -
“आप की भविष्य की क्या योजना है, आगे क्या करना चाहती हैं?”
शालिनी ने धीमे से अपनी आगे की योजना बताते हुए कहा था-
“अगर आप कोई हाई-फ़ाई लड़की चाहते हैं, तो मै बिलकुल वैसी नहीं हूँ, मेरी अंग्रेज़ी भी कमज़ोर है.”
“कोई बात नहीं, अमरीका में आप सब सीख जाएंगी, मुझे आपकी सच्चाई पसंद आई है.”
“एक बात और कहनी है, मै अपनी एम् एस सी की पढाई पूरी करना चाहती हूँ.”
“उसमें कोई बाधा नहीं आएगी. वैसे भी मुझे ग्रीन कार्ड मिलने में कुछ समय लगेगा.”
अमर अभी एच वन वीसा पर था.शादी के बाद पत्नी के साथ ग्रीन कार्ड लेने की सोच कर जल्दी शादी का निर्णय लिया गया था. पन्द्रह दिनों के भीतर शादी कर के वह अमरीका लौटने वाला था.-
अमर की हाँ से घर में खुशी का माहौल बन गया.सबने शालिनी के भाग्य को सराहा उसकी माँ ने कहा-“हमारी शालिनी बेटी है ही बहुत भाग्यवान, इसके जन्म पर इसके पापा का डी एस पी के रूप में सेलेक्शन हुआ था. ग्रेड अच्छे होने पर अब उन्होंने यूनीवर्सिटी में जॉब ले लिया है.”
विवाह की तैयारियों और रिश्तेदारों के आ जाने से शालिनी भी व्यस्त होगई, सहेलियां चिढातीं-
‘शादी के बाद शालिनी अमरीकन बन कर लौटेगी. हमारे मथुरा की भला याद रहेगी?”शालिनी सोचती भला वह कभी मथुरा को भूल सकेगी, जहां उसका मीठा बचपन बीता है.
अंतत: शादी का दिन आ पहुंचा. दिसंबर की ठंडी रात में भी शालिनी के मन में खुशी की ऊष्मा थी.विवाह हर्षौल्लास के साथ संपन्न होगया. विदा होती शालिनी को उसकी माँ ने प्यार से सीख दी थी-
“शालू बेटी, मै जानती हूँ, तू बहुत अच्छी लड़की है. कभी किसी की गलत बात पर भी विरोध ना कर के चुप रह जाती है. बस ऐसे ही अपने श्वसुर –गृह में भी अपने माता-पिता के सम्मान को बनाए रखना.”
ससुराल पहुंची शालिनी का स्वागत आशानुरूप उत्साह से नहीं किया गया. श्वसुर जी बेहद नाखुश थे. उनकी आशा के अनुरूप दहेज़ नहीं मिला था. अमर ने दहेज़ मांगने को मना कर दिया था.सास भी औरतों से कह रही थीं-
“हमारा हीरा जैसा बेटा मथुरा वाले कौड़ियों के मोल ले गए. हमें डर था कहीं अमर किसी गोरी मेंम के जाल में ना फंस जाए इसीलिए जल्दी में ये रिश्ता करना पडा, हम तो ठग गए.”
“अरे कुछ कमीने ऐसे ही होते हैं, कुछ ना मांगों तो खाली लौटाते शर्म नहीं आती.” श्वसुर जी बडबडाते.
माता-पिता के लिए अपशब्द सुनती शालिनी की आँखों में आंसू आ जाते उसके माता-पिता ने अपनी सामर्थ्य से अधिक सामान दिया था. शालिनी उनकी सबसे बड़ी बेटी थी, उसकी शादी में दिल खोल कर खर्च किया था. अगर उन्हें पैसे ही चाहिए थे तो साफ़ शब्दों में अपनी मांग बता देते. अमर इन बातों के विरोध में कुछ नहीं कहते, सोच कर शालिनी दुखी होती,पर अमर से कुछ नहीं कहा. एक सप्ताह बाद जल्दी आने का वादा कर अमर चला गया. शालिनी भी अपनी पढाई पूरी करने वापिस मथुरा चली गई.
डेढ़ वर्ष बाद ग्रीन कार्ड पाने के लिए अमर वापिस आया था. शालिनी भी एम एस सी कर चुकी थी.दोनों को ग्रीन कार्ड मिल गया. अब शालिनी के अमरीका जाने का समय आगया था. पहली बार प्लेन में बैठती शालिनी को कुछ घबराहट हुई, पर अपने को बादलों के ऊपर उड़ते देख शालिनी उत्साहित हो उठी.
सियाटेल का भव्य एयरपोर्ट देख शालिनी चमत्कृत थी. टैक्सी से बाहर देखती शालिनी को साफ़ चौड़ी सड़कों पर् दौडते अनगिनत तेज़ भागते वाहन विस्मित कर रहे थे. सियाटेल की हरीतिमा और सौन्दर्य ने उसे मुग्ध कर दिया. शायद स्वर्ग इसे ही कहते हैं. टैक्सी अमर के अपार्टमेंट के सामने रुकी थी. अपनी चाभी से दरवाज़ा खोल अम्रर ने शालिनी को अन्दर आने को कहा था. घर के भीतर गई शालिनी ने एक नज़र अपने घर पर डाली थी. एक बैचलर के मुकाबिले घर काफी सुव्यवस्थित था. अमर ने कहा-
“शायद फ्रिज में कुछ खाने का सामान बचा रखा होगा, अगर भूख लगी हो तो निकाल लो.”
“नहीं, अभी फ्लाइट में तो इतना खाया है, शाम के लिए कुछ ताज़ा बना लूंगी. इतने दिन का बासी खाना कैसे खाएंगे?’खुशी से शालिनी ने कहा.
“यहाँ बासी का कॉन्सेप्ट ही अलग है, महीनों पुराना खाना भी ताज़ा ही रहता है. तुम्हें अभी बहुत कुछ सीखना होगा, ये मथुरा नहीं है.”स्पष्ट आवाज़ में अमर ने कहा.
“घबराइए नहीं,बहुत जल्दी सब सीख लूंगी.”मुस्कुरा कर शालिनी बोली.
“सबसे पहले तो ज़रा अपने कपडे देखो. टीवी पर वेस्टर्न ड्रेसेज तो देखती होगी. कम से कम दिल्ली से कुछ वेस्टर्न ड्रेसेज ही ले आतीं, तुम नहीं जानतीं यहाँ कपडे कितने महंगे होते हैं,अमर ने रुखाई से कहा.
शालिनी का मन बुझ गया, उसे तो यही पता था, पति अपनी नवविवाहिता को गिफ्ट देने में खुशी का अनुभव करते हैं. पर शायद अमर ठीक कह रहा था, उसे इस बारे में पहले ही सोचना चाहिए था.
अमर सवेरे जाकर देर शाम को लौटता था. वह अधिक बातें नहीं करता था, शालिनी को अमर के व्यवहार से कोई शिकायत नहीं थी. इतना ज़रूर था जब भी उसके घर से फोंन आता, उसका मूड ख़राब हो जाता. हर फोन- काल के बाद अमर को शालिनी से किसी न किसी बात की शिकायत हो जाती.
“तुम्हारे मम्मी-पापा को यह भी नहीं पता लड़की की ससुराल में तीज-त्योहार पर कितना सामान भेजना चाहिए.मेरे पेरेंट्स के भी तो कुछ अरमान थे. अगर हरयाणवी रीति-रिवाज़ नहीं पता थे, तो मुझसे शादी करनी ही नहीं चाहिए थी. नाराजगी में घर से बाहर निकल जाता और घंटों बाद वापिस लौटता.
अमरीका में दिन बीतने शुरू होगए. शालिनी हर बात को ध्यान से देखती, समझने की कोशिश करती. पास के घरों में रहने वाली स्त्रियों से शालिनी ने मिलना शुरू किया था. उसे खुशी थी, उसके घर के पास उसकी तरह की कुछ लडकियां विवाह के बाद अमरीका आई थीं. नीता और सविता से शालिनी की अच्छी पटने लगी थी. हांलाकि अंग्रेज़ी उसकी कमजोरी थी,पर पास में रहने वाली अकेली वृद्धा मारिया उससे स्नेह से मिलती, उसने शालिनी को हिम्मत दी कि वह उनके साथ नि:संकोच अंग्रेज़ी में बात कर सकती है,. मारिया ने शालिनी को यह भी समझाया-
“इस देश में सब स्त्री-पुरुष काम करते हैं, तुमने जो डिग्री ली है, उसके आधार पर कोई काम कर सकती हो. मेरी एक फ्रेंड है, वह तुम्हें तुम्हारे योग्य काम के लिए तुम्हारी सहायता कर सकती है.”
मारिया की फ्रेंड की सहायता से शालिनी ने अपनी पसंद के विषय चाइल्ड- केयर का लाइसेंस ले लिया.. पर अभी काम शुरू करने की बात नहीं सोची. पहले उसे अमेरिकन जीवन-शैली को समझना ज़रूरी था.इसके लिए सविता और नीता से बहुत जानकारी मिलती थी.
सविता और नीता ने शालिनी को सलाह दी कि उसे ड्राइविंग सीख लेनी चाहिए वरना छोटी-छोटी —ज़रूरतों और काम पर जाने के लिए उसे अमर पर निर्भर होना पड़ेगा. ड्राइविंग सीखने की बात पर अम्रर बोला-
“वाह लगता है तुम्हारे पर निकल आए हैं, मेरे पास दूसरी कार खरीदने के लिए फ़ालतू पैसे नहीं हैं.वैसे भी तुम कौन सी नौकरी पर जाती हो,”
“विश्वास रखिए जल्दी ही कोई काम शुरू करूंगी,प्लीज मुझे ड्राइविंग सीखने की परमीशन चाहिए.”
शालिनी को राजीव की बात याद हो आई, उसने कहा था, अमरीका में लडकियां कार ही नहीं बड़ी-बड़ी-वड़ी बसें चलाती हैं. शालिनी के बार-बार के अनुरोध पर अंतत: अमर ने ड्राइविंग स्कूल में शालिनी का नाम रजिस्टर करा दिया.शालिनी पूरे मन से ड्राइविंग सीखने लगी. जिस दिन उसे ड्राइविंग लाइसेंस मिला उसकी खुशी का अंत नहीं था. उसने एक विजय पा ली थी. इस बीच उसने ग्राफिक्स डिज़ाइनिंग और इंग्लिश की क्लासेज़ भी पूरी कर लीं. अब शालिनी कोई काम तलाशने की बात सोच रही थी कि शालिनी को आभास हुआ कि वह माँ बनने वाली है.
शालिनी की खुशी का ठिकाना ना रहा. किताबें पढ़ कर शालिनी अपने आने वाले शिशु के लिए अपने को तैयार कर रही थी. प्रसव समय निकट आने पर शालिनी ने बड़ी नम्रता से अमर से कहा—
“आपसे एक अनुरोध है, डिलीवरी के समय माँ के आने से मुझे साहस और सहायता मिलेगी. अगर आप अनुमति दें तो इस समय अपनी माँ को यहाँ बुलाना चाहती हूँ.”
“ठीक है, पर यहाँ आने के लिए अपना टिकट उन्हें खुद खरीदना होगा.अभी मुझे कुछ फाइनेंशियल प्रॉब्लेम है वरना टिकट ज़रूर भेजता.अब देखो बेबी के जन्म के पहले ही ढेरों सामान खरीदना होग़ा. हमारे हिन्दुस्तान में ऐसे झंझट नहीं होते.”संजीदगी से अमर ने कहा.
‘आप उसके लिए परेशान ना हों, माँ अपना यहाँ आने का खर्च उठा सकती हैं.”शालिनी ने जब खुशी से यह बात आंटी मारिया को बताई तो उन्होंने आश्चर्य से कहा-
“क्या अमर को पैसों की प्रॉब्लेम है क्या तुम उसकी सैलरी जानती हो? मुझे नहीं लगता उसे इंडिया एक टिकट भेजना कठिन बात है. तुम्हारा ज्वाइंट अकाउंट तो होगा.”
“नहीं, आंटी, मुझे यहाँ के बैंक वगैरह के बारे में कुछ नहीं पता. मुझे जो भी चाहिए अमर से ले सकती हूँ. अमर को ज़रूर कोई मुश्किल होगी.” शालिनी को अमर पर पूरा विश्वास था.
माँ के आ जाने से शालिनी बेहद खुश थी. माँ ने आते ही शालिनी को सारे घर के कार्यों से मुक्त कर दिया, दामाद होने के कारण माँ अमर का बहुत ख्याल रखतीं,पर अमर उनके स्नेह के प्रति उदासीन रहता बल्कि एक दिन उसने शालिनी से कहा-
“अपनी माँ से कह दो, मै बच्चा नहीं हूँ. अपनी परवाह खुद कर सकता हूँ.””
दिसंबर में शालिनी ने एक नन्हीं बेटी नेहा को जन्म दिया. माँ और बेटी दोनों सकुशल हैं की सूचना जब अमर ने अपने परिवार वालों को दी तो बधाई की जगह उसे ढेरों उलाहने सुनाने को मिले.
“कौन सी खुशी की बात सुना रहे हो? कौन सा बेटा जन्मा है. तुझ पर एक और बोझ बढ़ा दिया. अमरीका में शालिनी की माँ मौज उड़ा रही है, उसके टिकट पर अपने पैसे लुटा डाले.”श्वसुर जी दहाड़े.
“तुझे अपनी माँ पर यकीन नहीं था जो अपनी सास को बुला कर हमें बेइज्जत किया है. हमें तो पक्का यकीन है,शालिनी और उसके घरवाले तुझे लूट लेंगे.मेरी बात मान,बहुत होगया अब तू शालिनी से तलाक ले ले. तुझे एक नहीं हज़ार अच्छी और अमीर घर की लडकियां मिल जाएंगी.”
इत्तेफाक से शालिनी ने फोन के दूसरे कनेक्शन पर ये बातें सुन लीं. उसे आश्चर्य था कि अमर ने एक भी बात का प्रतिवाद नहीं किया इससे शालिनी स्तब्ध रह गई. अमर यह भी क्यों नहीं कह सका माँ अपने पैसे खर्च कर के यहाँ आई थी, अपनी बेटी और नातिन की सेवा करने आई है, मौज उड़ाने नहीं. वह तो घर से बाहर भी नहीं निकली थी. उस रात अमर बेहद उखड़े मूड में बाहर से खाना खाकर लौटा. कुछ स्वस्थ होते ही माँ को और अपमानित ना होने देने के कारण शालिनी ने माँ को वापिस भेज दिया. अमर से कोई शिकायत न कर अमर के साथ सामान्य जीवन व्यतीत करती रही.
दो वर्ष बाद शालिनी फिर माँ बनने वाली थी. इस बार अमर ने अपने माँ-बाप को बुला लिया.डॉक्टर ने कहा इस बार केस बहुत कॉम्प्लिकेटेड था. शालिनी को कम्प्लीट बेड- रेस्ट बताया गया था.सास का मानना था शालिनी ने डॉक्टर को भरमा कर आराम करने का बहाना बनाया था. शालिनी बहाना करके सास से सेवा करवाना चाहती है.सास ने जोर देना शुरू किया-
“अल्ट्रासाउंड करा लो अगर कोख में बेटी है तो उसे खत्म करना ज़रूरी है.” शालिनी ने साफ़ मना कर दिया, जो भी हो वह किसी भी हालत में अल्ट्रासाउंड नहीं कराएगी.
शालिनीके मना करने से सास का पारा और चढ़ गया, पर शालिनी नहीं मानी. दूसरी बेटी कोमल के जन्म से तो घर में भयंकर महाभारत छिड़ गई.
“हाय राम हमारे बेटे की तो किस्मत ही फूट गई दो-दो कुलाक्षणियां छाती पर मूंग दलने आगईं, हमारा अमर तो इन्हें पार लगाते-लगाते कंगाल हो जाएगा.” सास ने पोतियों को कोसना शुरू कर दिया.नन्हीं कोमल इस दुनिया में आने पर अपने स्वागत को टुकुर-टुकुर ताक रही थी.
“बेटा हमारा इंडिया का टिकट कटा दो, हम यहाँ नहीं रह सकते.बच्चों के जन्म पर ननिहाल से कपडे -जेवर आते हैं यहाँ हमें लूटा जारहा है.बहाना बना करके तेरी पत्नी अपनी सास से सेवा करवा रही है.”श्वसुर जी ने सिर्फ नाराजगी ही नहीं दिखाई बल्कि वापिस चले भी गए.
उनके वापिस जाने से अमर बहुत दुखी था और इसके लिए वह शालिनी को उत्तरदायी मानता. माँ-बाप की रोज़ की बातों और शिकायतों के कारण शालिनी और अमर के संबंधों में दरार आने लगी थी.उनका संबंध अब पहले जैसा नहीं रह गया था.अमर को अपने माँ-बाप की बातें और शिकायतें उचित लगतीं. वह भी अक्सर कहता-
“जल्दबाजी के कारण मुझे भी धोखा हो गया. मेरे लिए एक से एक अच्छे प्रोपोज़ल्स थे, ग्रीन कार्ड पाने की वजह से जैसा-तैसा जो मिला स्वीकार करना पड़ा.”
शालिनी जवाब देना चाहती, उसने तो अमर से कुछ नहीं छिपाया था अब शिकायत क्यों, पर अपने शांत स्वभाव के कारण वह मौन रह जाती शालिनी विस्मित होती, आई आई टी का पढ़ा इन्जीनियर अमर अपने माँ-बाप की गलत बातों का विरोध ना करके, शालिनी पर अपनी नाराजगी उतारता.
उनके जाने के कुछ दिनों बाद मथुरा से शालिनी के पापा ने शुभ सूचना दी कि शालिनी के भाई की शादी की तिथि निश्चित हो गई है, दामाद जी को विशेष आदर से निमंत्रित किया गया था. शालिनी की खुशी का ठिकाना नहीं था.इतने दिनों बाद अपने पति और अपनी बेटियों के साथ अपने घर जारही थी. घर में परिवार जनों ने बहुत प्यार और उत्साह से शालिनी, अमर और उनकी बेटियों का स्वागत किया.
मथुरा जाने के पहले अमर ने शालिनी से कहा था –
“शादी के घर की भीड़भाड़ में पासपोर्ट और ग्रीन कार्ड सुरक्षित नहीं रहेंगे, इन्हें मेरे पापा के लॉकर में छोड़ जाओ.”अमर की बात ठीक थी शालिनी ने अपने महत्वपूर्ण डॉक्युमेंट्स श्वसुर जी के पास रखवा दिए.
हंसी-खुशी शादी संपूर्ण हो जाने पर अमर वापिस अमरीका चला गया. शालिनी एक-दो माह अपने परिवार के साथ बिताने को मथुरा में ही रुक गई.अचानक एक दिन अमर का उदास स्वर सनाई दिया –
“शालिनी, मेरा जॉब चला गया. तुम तो जानती ही हो माइक्रोसॉफ़्ट में ले-ऑफ़ होते रहते हैं.अब कुछ दिन तुम्हे और मथुरा में रहना होगा. जैसे ही कोई दूसरा जॉब मिलेगा तुम्हें बुला लूंगा.”
शालिनी दिन गिनने लगी, रोज़ प्रार्थना करती अमर को जल्दी कोई जॉब मिल जाए. दिन बीतते रहे, तीन महीने तक अमर से शालिनी को कोई जॉब मिलने का समाचार ना मिलने से शालिनी के पापा को संदेह हुआ. उनके कहने पर शालिनी ने अपनी सहेली नीता से अमर के समाचार पूछे, नीता ने जो बताया वो शालिनी को स्तब्ध करने को काफी था. अमर की नौकरी नहीं गई थी, वह माइक्रोसॉफ़्ट में पूर्ववत कार्यरत था. उसके माता-पिता उसके साथ रह रहे हैं. वे सब लोग मजे से हैं.
शालिनी ने अमर को फोन कर के कहा अब वह अमरीका वापिस आना चाहती है, उसे अपने पासपोर्ट और ग्रीनकार्ड चाहिए. अमर का उत्तर सर्वथा अप्रत्याशित था-
“क्या कह रही हो? पासपोर्ट और ग्रीन कार्ड तो तुम्हारे ही पास थे. ज़रूर तुमने ये महत्वपूर्ण डॉक्युमेंट्स खो दिए हैं, तुम भला मेरे पापा के पास ये ज़रूरी डॉक्युमेंट्स क्यों छोड़तीं.”
शालिनी के पाँव तले ज़मीन खिसक गईं.अमर का धोखा साफ़ सामने आगया. पहले भी कई बार उसकी माँ को कहते सुना था, तू तलाक ले ले, एक से एक अच्छी लड़की मिलेगी. इसमें है ही क्या, ना तो कोई दान-दहेज़ लाई ना ही अमरीका में काम कर के कमाई करने लायक है. हम तो जल्दबाजी में मारे गए.”
अब शालिनी के सामने बहुत बड़ी समस्या मुंह बाए खडी थी. पर उसने दृढ निश्चय कर लिया, वह किसी भी हालत में हार नहीं मानेगी. मथुरा से दिल्ली में स्थित अमरीकन एम्बैसी के चक्कर लगाती शालिनी अमर के धोखे का सामना करने को दृढ प्रतिज्ञ थी. एम्बैसी के अधिकारी उसका सत्य मानने को तैयार नहीं थे, उनका कहना था ऎसी घटनाए आए दिन घटती है, शादी कर के बहुत से लोग पत्नी को यहाँ छोड़ कर अमरीका वापिस चले जाते हैं. तुम पर कैसे यकीन किया जाए कि तुम ग्रीन कार्ड होल्डर हो.
दोनों बेटियों का जन्म अमरीका में हुआ था वे अमेरिकन नागरिक थीं. अत:अमरीका से उनके जन्म के कागजात मिल जाने से उनके पासपोर्ट बन गए. सौभाग्यवश शालिनी के पास उसका ड्राइविंग लाइसेंस था उसमें उसका पूरा पता था. शालिनी द्वारा उसका सोशल सिक्यूरिटी नंबर बताने से अमरीका से जानकारी मंगाई गई. जानकारी मिलने पर शालिनी को अमरीकन एम्बैसी से एक बंद पैकेट दिया गया . पैकेट को ना खोलने के निर्देश के साथ वो पैकेट उसे अमरीका के इमीग्रेशन डिपार्टमेंट को देना था. शालिनी ने अमर और नीता को फोन से सूचित किया कि वह अमरीका पहुँच रही है.भारतीय एयरपोर्ट पर दो नन्हीं बेटियों के साथ बोर्डिंग के लिए प्रतीक्षा कर रही शालिनी को पुलिस ने बोर्डिंग करने से रोक कर कहा कि अमरीका में रह रहे उसके श्वसुर ने रिपोर्ट की है कि शालिनी झूठे दस्तावेजों पर अमरीका जा रही है. शालिनी ने अपना बंद पैकेट दिखाया. अमरीकी एम्बैसी के पेपर्स देख कर उसे जाने की इजाज़त दी गई, यही कहानी लन्दन एयरपोर्ट पर दोहराई गई .इतनी समस्याओं का सामना करने के बाद जब शालिनी अपनी दो नन्हीं बेटियों के साथ सियाटेल पहुंची तो अमर उसे लेने नहीं आया था. नीता के पति ने उन्हें घर पहुंचाया. दरवाज़ा अमर ने खोला.शालिनी ने कोई बात नहीं की. कुछ देर बाद अमर ने नाराजगी से कहा-“तुम बिना मेरी इजाजत कैसे आगईं? वापिस इंडिया जाओ, माफी मांगो, जब इजाज़त दूंगा तब आना.”“मै यहाँ इसी घर में रहूंगी. इस घर पर मेरा भी आधा अधिकार है.”शालिनी ने दृढ़ता से कहा.“”किस अधिकार की बात कर रही हो,तुम कर ही क्या सकती हो?मेरे बिना तुम कुछ नहीं हो. या तो मैकडोनाल्ड में काम करोगी या सड़क पर भीख मांगोगी.”अमर ने तेज़ी से कहा.“क़ानून मुझे न्याय दिलाएगा. अपने और बेटियों के अधिकार के लिए लिए अन्याय नहीं सहूंगी.”.शालिनी की बात अमर की समझ में आगई. अमरीका के क़ानून से वह परिचित था.मित्रो ने भी अमर को शालिनी के साथ समस्या सुलझाने और समझौता करने की सलाह दी.अमर ने समस्या सुलझाने के लिए तीन महीने का समय माँगा. बड़ी बेटी नेहा को स्कूल में एडमीशन दिला दिया गया. अमर उसे स्कूल पहुंचाने और वापिस लाने जाता था. शालिनी अब कुछ निश्चिंत हो चली थी ,शायद अमर सच में उसके साथ समझौता करना चाहता था.एक दिन अमर ने शालिनी से घर के कागजातों पर यह कह कर साइन करा लिए कि वह घर को रिफाइनेंस कर रहा है. टैक्स के कागजों पर भी शालिनी के दस्तखत ले लिए. एक दिन शालिनी को किसी आवश्यक कार्यवश कहीं जाने के लिए कार चाहिए थी“अमर, मुझे ज़रूरी काम के लिए कुछ देर के लिए कार चाहिए.”“ऐसा कौन सा काम है,जिसके लिए कार चाहिए? नहीं, तुम जब जी चाहे कार नहीं ले जा सकतीं.”अमर ने क्रोध से कहा.अमर को कार्य बताने के बावजूद उसने चाभी देने से साफ़ इनकार कर दिया. कोई उपाय न देख, शालिनी ने सामने रखी चाभी उठा ली.क्रोधावेश में अमर ने शालिनी को पीटना शुरू कर दिया. अपनी दोनों बेटियों को ले कर बदहवास शालिनी मारिया आंटी के पास पहुंची, उनके घर से शालिनी ने फोन से नाइन वन वन को कॉल कर दिया. मिनटों में पुलिस पहुंच गई, पुलिस घरेलू हिंसा के अपराध में अमर को जेल ले जाना चाहती थी, पर अमर ने रो-रो कर माफी मांग कर कहा, “क्रोध में मुझसे गलती होगई, अब ऐसा नहीं होगा.”इसके बावजूद अमर रोज़ रात देर में वापिस आता, उसका व्यवहार भी बदला हुआ था. एक रात उसने फोन करके शालिनी से कहा-“अब मै उस घर में कभी वापिस नहीं आऊँगा, शालिनी जो चाहे करने को स्वतंत्र है. अब शालिनी के साथ उसका कोई संबंध नहीं है.”पता करने पर शालिनी को ज्ञात हुआ पिछले तीन महीनों से अमर की बहिन और उसके पेरेंट्स अमरीका में रह रहे थे. अमर ने उनके लिए एक अपार्टमेन्ट ले रखा था.मित्र की बीमारी का बहाना कर, वह रोज़ देर रात तक उन्हीं के साथ रहता था. इस बारे में अमर ने शालिनी को कुछ नहीं बताया था.अमर द्वारा शालिनी से संबंध तोड़ने की बात सुन कर शालिनी के मित्रो और मारिया आंटी ने शालिनी को समझाया –“अमर द्वारा तलाक का नोटिस भेजने के पहले शालिनी को तलाक का नोटिस भेज देना चाहिए , इससे उसका केस मज़बूत होगा.केस करने के अलावा अब कोई और चारा नहीं है.”सबकी सलाह से शालिनी ने एक महिला वकील द्वारा अमर को तलाक का नोटिस भिजवा दिया. इस नोटिस ने अमर को बौखला दिया. उसने कभी नहीं सोचा था मथुरा जैसे छोटे शहर की लड़की अमरीका जैसे विशाल महाद्वीप की धरती पर संघर्ष करने का साहस कर सकती थी. उसने कोर्ट में जज और वकीलों के समक्ष खड़े होने की कभी कल्पना भी नहीं की होगी.पूरी सच्चाई जान कर महिला वकील समझ गई, शालिनी के साथ अन्याय हुआ है,उसने कहा-“तुम डरो नहीं, तुम्हें चाइल्ड- सपोर्ट और अदालत से पैसे दिलवाऊंगी. केस समाप्त होने तक तुम्हें उसी घर में रहने का अधिकार होगा.कोर्ट का फैसला होने तक अमर को अपनी पत्नी शालिनी को खर्चे के पूरे पैसे देने होंगे.”.शालिनी की दिन-रात की नींद उड़ गई. कोर्ट और कचहरी के बारे में उसे कोई जानकारी नहीं थी, उस पर अमरीका का कोर्ट. शालिनी की माँ अपना सब कुछ त्याग कर शालिनी के साथ रहने को आगईं अन्यथा दो बच्चियों के साथ शायद वह अन्याय के सामने हार मानने को विवश कर दी जाती.मुकदमा शुरू होने पर जांच के आधार पर अमर का धोखा सामने आ गया, शालिनी की जानकारी के बिना उसने लाखों के स्टॉक्स बेच दिए थे. बैंक से पूरा पैसा निकाल कर अपने माता-पिता के नाम अकाउंट खुलवा कर पैसे स्विट्ज़रलैंड के बैंक में ट्रांसफर करवा दिए थे.पूछे जाने पर अमर ने शालिनी पर इलज़ाम लगाया कि वह उन पैसों से बिजनेस करना चाहती थी,पर जांच करने पर सच्चाई सामने आगई.उसका इलज़ाम बिलकुल गलत था. जज ने शालिनी क श्वसुर से कहा या तो वह पैसे वापिस करें अन्यथा उन्हें जेल में डाल दिया जाएगा. उन्होंने अपनी सफाई में कहा, उन पैसों से इंडिया में ज़मीने खरीदी हैं. उसके लिए उन्होंने फर्जी कागज़ात भी बनवा लिए. श्वसुर ने शालिनी पागल करार करने की कोशिश की, कहा उसके लिए वह उसका प्रमाणपत्र भी दे सकते हैं. शालिनी के पक्ष में उसके पड़ोसियों, मित्रो और भारत से आए एक वकील ने गवाही दे कर शालिनी के पक्ष की सत्यता स्पष्ट कर दी.श्वसुर के सारे इलज़ाम झूठे सिद्ध होगए.दोनों पक्षों की बातों के आधार पर जज ने शालिनी के पक्ष में अपना निर्णय सुना दिया. यह सिद्ध हो गया था कि अमर ने अपनी पत्नी शालिनी को धोखा दिया है. शालिनी केस जीत गई.अमर को निर्देश दिए गए कि अमर अपनी रिटायरमेंट के पैसों से शालिनी को पैसे देगा, शालिनी के वकील की फीस का भुगतान करेगा,चाइल्ड- सपोर्ट और पांच वर्षों की अलमनी देगा. आने लाभ के लिए अमर ने बेटियों की पूरी कस्टडी मांगी, पर उसे नियमानुसार ज्वाइंट कस्टडी ही दी गई.शालिनी के सामने अब एक बड़ा सवाल था, उसे क्या करना है? अपनी दो बेटियों का उज्ज्वल भविष्य कैसे बनाना है. उन्हें किसी के सामने अपने को हीन नहीं समझने देगी. नहीं, वह हार नहीं मानेगी, स्वयं स्वाभिमान का जीवन जीते हुए, उसे अमर के शब्दों को झुठलाना है. उसने कटु शब्दों में कहा था-“तलाक का नोटिस तो भेज दिया है, पर क्या अकेले रह कर मेरे साथ वाली हाई स्टैण्डर्ड जीवन- शैली बनाए रख सकती हो, उसी शानदार लोकैलिटी में वैसे ही घर में रह पाओगी? अपनी बेटियों को कैसे बड़ा कर पाओगी, उस स्कूल में पढ़ा पाना तो सपना भर बन कर रह जाएगा.”शालिनी को जो पैसे मिले उनसे उसने उसी लोकैलिटी में एक अच्छा सा घर खरीद लिया. सहेलियों ने भी शालिनी को चाइल्ड –केयर के आधार पर काम शुरू करने की सलाह दी_“शालिनी, तुम्हारे पास चाइल्ड केयर का लाइसेंस है, जो पेरेंट्स काम पर जाते हैं उनके बच्चों की देख-रेख का कार्य अपने घर में शुरू करो.इस तरह तुम्हें आर्थिक सहायता और संतोष मिलेगा.”चाइल्ड केयर का कार्य शुरू करने करने से शालिनी को सच्चा सुख मिलने लगा.पेरेंट्स द्वारा उसके कार्य की प्रशंसा से बच्चों की संख्या बढ़ती गई. शालिनी अब पूर्णत: आत्मनिर्भर स्वाभिमानी स्त्री थी. उसके घर के सामने की बगिया उसके पुराने शौक की परिचायक थी. उसके गुलाबों की सुन्दरता देखने लोग आते थे. अपनी कार से बेटियों को स्कूल छोड़ने जाती शालिनी अपनी सहेलियों के प्रति आभारी थी, जिन्होंने उसे अमरीकी जीवन की आवश्यकताओं से परिचित कराया था.दिन महीने वर्ष बन कर बीतते गए. नन्हीं नेहा कॉलेज पहुँच गई. अब वह अमरीका की प्रसिद्ध यूनीवर्सिटी में कम्प्यूटर सांइंस के तृतीय वर्ष में थी, छोटी बेटी कोमल ने भी इस वर्ष नामी यूनीवर्सिटी में प्रवेश लिया था. शालिनी जब अपने अतीत की समस्याओं के विषय में सोचती है तो स्वयं विस्मित होती है . कैसे वह उन समस्याओं के आगे अपराजित खडी रही.पिछले कुछ दिनों से उसकी माँ और फ्रेंड्स उसे राय देने लगे हैं, अब शालिनी को अपने विषय में कुछ सोचना चाहिए.कुछ समय बाद उसकी बेटियों का अपना जीवन होगा, वह कहाँ तक शालिनी का साथ दे सकेंगी.अमरीका में माँ-बाप को अलग होते और दूसरा विवाह करते देखते हुए ही बच्चे बड़े होते हैं. कुछ नहीं तो उसे कोई सच्चा और ईमानदार पुरुष-मित्र ही बना लेना चाहिए.आज अमरीका की संस्था द्वारा शालिनी को रैविशिंग वूमन के सम्मान से सम्मानित किया गया है. हाथ में फूलों का बुके थामे शालिनी सोच रही थी उस सीधी-सादी भीरु सी लड़की में कहाँ से इतना साहस और आत्म विश्वास आगया था. किस प्रेरणा से वह अपराजित खडी रह सकी.कौन था इसके पीछे?फ़ोन की घंटी से शालिनी की तंद्रा भंगकर दी .दूसरी तरफ से एक परिचित आवाज़ थी –“कांग्रेच्युलेशन्स रैविशिंग वूमन.राजीव हियर.”“”राजीव तुम कहाँ हो? शालिनी की आवाज़ में उत्साह छलका पड़ रहा था.“मै कहाँ गया था, हमेशा तुम्हारे साथ ही तो था.सच कहो, क्या मेरे शब्द तुम्हें मुश्किलों में प्रेरणा नहीं देते रहे. अपने मन से पूछो क्या वो मेरे दिखाए डर पर विजय पाने के लिए संघर्ष नहीं करता रहा?’“मानती हूँ, पर तुमने तो अमरीका आकर अपनी मित्र की खबर ही नहीं ली.मैने क्या कुछ नहीं झेला, राजीव.”शालिनी का स्वर भीग गया था.“सच्चे मित्र कभी दूर नहीं होते.मैने तुम्हारे हर साहसी कदम पर गर्व किया है.हमेशा तुम्हारे बारे में जानकारी लेता रहा. बहुत चाह कर भी तुमसे मिलने नहीं आया, जानता था, मुझे अपने साथ पाकर तुम कमज़ोर पड़ जातीं, मेरी सहायता पर क्या निर्भर नहीं हो जातीं? आज तुम्हारी जीत मेरी भी जीत है. “अगर हार जाती तब क्या तुंम सहारा देने आते,राजीव?”“शालू. मै तो अपनी हार मानता हूँ. मै गलत था, तुमने ठीक कहा था भारतीय लड़कियों में हर स्थिति से एडजस्ट करने और उस पर विजय पाने की शक्ति होती है.तुमने ये बात सिद्ध की है.”तुमने कभी अपने बारे में भी नही बताया, राजीव. कहाँ हो कैसे हो?“जो कष्ट तुमने झेला, मैने भी सहा है. हम दोनों एक ही राह के राही हैं. कुछ दुर्भाग्यपूर्ण कारणोंवश मेरा भी मेरी पत्नी के साथ डाइवोर्स होगया.तुम्हारी तरह दो बेटों को बड़ा किया है.”राजीव ने उदासी से कहा.“तुम्हारे लिए बहुत दुःख है,काश तुमसे मिल कर हम दोनों एक-दूसरे के दुःख बाँट लेते.”“दरवाज़ा खोलो, शायद तुम्हारी मनोकामना पूरी हो जाए.“दरवाज़ा खोलते सामने खड़े राजीव को देख शालिनी बिना कुछ सोचे उसकी फैली बाहों में समा गई.बीस वर्षों का अवसाद क्षण भर में तिरोहित हो गया. “क्याउकअब राजीव की नज़रों में शालिनी का दूसरा ही रूप था.राकेश ने ठीक कहा था,सुन्दरता मन की होती हैदोनों ने यूनीवर्सिटी में एडमीशन ले लिया था.अक्सर मथुरा से आगरा दोनों एक साथ ही जाया करते.अब दोनों के संबंध सहज हो चुके थे. तरह-तरह के विषयों पर दोनों बात करते.एक-दूसरे का साथ अच्छा लगता. अक्सर शालिनी को लगता राजीव की मुग्ध दृष्टि उस पर निबद्ध रहती है,पर उसे उसने अपना भ्रम ही माना .राजीव की मेधा की तुलना में वह अपने को कम पाती थी.अचानक शालिनी के पापा के एक मित्र ने अमरीका से भारतीय लड़की के साथ विवाह करने के लिए आरहे लड़के अनिल के विषय में सूचना दी थी. अनिल मद्रास आईआईटी से कम्प्यूटर इंजीनियरिंग करके अमरीका की कम्पनी में काम कर रहा था. वैसे तो उसका परिवार हरयाना के गांव का रहने वाला है, पर उनके परिवार के लड़के और लडकियां उच्च शिक्षा प्राप्त हैं.शालिनी के विवाह के लिए उसके पापा लड़के और उसके परिवार से बात कर सकते हैं. वर रूप में अनिल हर प्रकार से योग्य था.घर में खुशी का माहौल छा गया.शीघ्र ही शालिनी के माता-पिता अनिल के माँ-बाप से मिलने उनके गाँव भाड़ावास पहुंचे. सब बातें होने के बाद अनिल और उसका परिवार शालिनी से मिलने आ पहुंचा.अनिल के विषय में सुन कर राजीव के चेहरे पर छाई उदासी शालिनी नहीं देख सकी.उसकी आँखों में अमरीका के सपने जगमगा रहे थे.“तू अमरीका के सपने देख रही है, पर तुझ जैसी सीधी-सादी भोली लड़की क्या अमरीकी ज़िंदगी से एडजस्ट कर पाएगी?वहां की फैशनेबल गोरी लड़कियों की रहने की स्टाइल की तो छोड़, तुझे तो ढंग के कपड़ों की भी समझ नहीं है. ये कस के बांधी एक चोटी, सादे सलवार सूट वहां नहीं चलेंगे.”“क्या हम इतने खराब दीखते हैं, राजीव?”भोलेपन से शालिनी ने पूछा.“मेरी नजरों में तो तू दुनिया की सबसे अच्छी,सबसे सुन्दर लड़की है,पर डरता हूँ, कहीं अनिल ने वहां किसी और के साथ रिश्ता ना बना लिया हो.ऎसी बहुत सी कहानियां सुनी हैं.”राजीव ने अपनी बात कही.
अचानक सजल की दृष्टि स्नान करती एक युवती पर पड़ी थी. बदन से लिपटी भीगी साड़ी उसके सौन्दर्य को उजागर कर रही थी. लोगों की लोलुप दृष्टि से अनजान सूर्य को अर्ध्य देती युवती प्रभात के सौन्दर्य की अभिवृद्धि कर रही थी. सजल का मन चाहा उस युवती की फोटो अपने मोबाइल पर उतार ले, पर उसके संस्कारों ने उसे ऐसा करने से रोक दिया. कुछ ही देर बाद एक चादर से अपने को ढांप वह बाहर आ गई. सजल के पास खडी एक औरत की व्यंगपूर्ण बात सजल के कानों में पड़ी थी,
“सौ-सौ चूहे खा कर बिल्ली हज को चली.”
“अरी कमली इधर आ, कहीं वो तुझे छू ना ले.”दूसरी स्त्री ने अपनी बेटी को संकेत से बुलाया.उन बातों से निर्लिप्त युवती आगे बढ़ती गई. पिता की अस्वस्थता के कारण सजल का यूनीवर्सिटी जाने के पूर्व मन्दिर जाना आवश्यक था. सजल ने जब यूनीवर्सिटी में लेक्चरार बनने की बात की तो जैसे घर में भूचाल आ गया. उसके पापा सीताराम चौंक गए, इतनी बड़ी जायदाद और संपत्ति का इकलौता वारिस शहर में मास्टरी करे, ये बात उनके गले से नीचे नहीं उतर रही थी. शहर में पढने तक की बात तो ठीक थी, पर अब अब शहर जाने की जिद से वह परेशान हो उठे, पर सजल के ह़ठ के आगे उन्हें झुकना ही पडा.“पापा, अब जमींदारों के ज़माने लद गए, आप ही देखिए अब क्या आपको लोग वैसे ही इज्ज़त देते हैं? युवा पीढी को सही राह दिखाना बहुत महत्वपूर्ण कार्य है, मै ने निर्णय ले लिया है, मै शिक्षक ही बनूंगा.”शहर आने पर अपने साथ आए बड़े परिवार के लिए सीताराम जी ने गंगा किनारे एक बड़ा मकान खरीद लिया. जमींदारी की शानोशौकत अभी भी बाक़ी थी. अपना मन्दिर ना हो तो कैसी पूजा-अर्चना, अत: गंगा-किनारे एक मन्दिर बनवा कर बनारस से अपने पुराने पुजारी को भी बुलवा लिया. रोज प्रात:गंगा-स्नान के बाद मन्दिर में पंडित जी के वचन सुन कर उनका मन शांत हो जाता. अब मन्दिर के भजन-कीर्तन में भारी संख्या में लोग आने लगे थे. पिछले सप्ताह से खांसी-ज़ुकाम और तेज़ बुखार के कारण डॉक्टर ने उन्हें सवेरे गंगा-स्नान जाने के लिए मना कर दिया था. अब उनके स्थान पर सजल को यह दायित्व उठाना पड़ता था.मन्दिर मे सजल के प्रवेश पर पुजारी जी ने ज़ोरदार शब्दों में स्वागत किया-“आइए भैया जी, आरती के लिए आपकी प्रतीक्षा थी, लीजिए आरती कीजिए.”सजल ने आरती शुरू की और “ॐ जय जगदीश हरे” के भजन ने मन्दिर का वातावरण पावन कर दिया. आरती समाप्त होने पर पुजारी जी के सहायक चरण दास ने सजल के हाथ से आरती का थाल ले लिया. भक्त जन आरती लेने को उमड़ पड़े. अपनी-अपनी श्रद्धा के अनुरूप सब थाल में पैसे रख रहे थे. वापिस जाने वालों को अमृत- जल और इलायची दानों का प्रसाद दिया जा रहा था. अचानक सजल की नज़र कोने में खडी अपने में सिमटी गंगा-स्नान कर रही उसी युवती पर पड़ी. वो आरती लेने आगे क्यों नहीं आई, सजल विस्मित था. पुजारी के सहायक चरण दास से पूछा -“आपने उस लड़की को आरती नहीं दी?”“नहीं भैया जी, वो इस आरती के लायक नहीं है. आप उसे छोड़िए.”उसके चेहरे पर कुत्सित मुस्कान थी.घर लौटता सजल विस्मित था, उसके बारे में ऎसी कौन सी बात हो सकती है, पापा से पूछना होगा.दूसरे दिन भी वही दृश्य था, पर आज सजल अपने मन को नहीं रोक सका. उस लड़की की फोटो अपने मोबाइल पर उतार ही ली. अगले दिन भी सजल इसी आशा से मन्दिर गया कि शायद वो लड़की आज भी वहां होगी और आज सजल पंडित जी के सहायक से उसे आरती देने को अवश्य कहेगा, शायद उसके पास आरती में डालने के लिए पैसे ना हों और इसी लिए वो आरती लेने आगे नहीं आती.मंदिर में सब पूर्ववत, दृश्य था, आरती कर चुकने के बाद सजल ने चारों और दृष्टि दौडाई, पर आज वह मन्दिर में नहीं थी. सजल को हलकी सी निराशा हुई. ना जाने क्यों उसकी फोटो कम्प्यूटर पर प्रिंट कर डाली. ऎसी कौन सी बात है जिसके कारण उसे आरती लेने के योग्य नहीं समझा जाता. दो-तीन दिन ऐसे ही बीत गए, वो लड़की मन्दिर में नहीं दिखी. उसके बारे में किसी से पूछने में भी सजल को संकोच होता था.अचानक अगले दिन वो लड़की दिखाई दी थी, साधारण सी धोती में वो बेहद उदास दिख रही थी. सजल मन्दिर में एक किनारे बैठ गया.सबके जाने के बाद लड़की संकोच के साथ पुजारी जी के सामने हाथ जोड़े विनय करती बोली थी’“पुजारी काका, हमारी माँ बहुत बीमार है, उसके नाम की पूजा कर दीजिए, बहुत कृपा होगी.”धोती के आँचल में बंधी गाँठ खोल कर एक मुड़ा-तुड़ा एक नोट पुजारी की ओर बढाया था.“पागल हुई है, भला पांच रुपयों से माँ की बीमारी दूर भगाएगी. कम से सौ रूपए तो लाती.”“हमारे पास बस इतने ही पैसे बचे हैं, वैद्य जी को पैसे देने थे.”धीमे से लड़की ने कहा.“क्यों, रात भर की कमाई बस इतनी ही होती है?”कुटिल मुस्कराहट से चरण दास बोला.लड़की के मौन से क्षुब्ध सजल पुजारी के समीप जाकर बोला-“पंडित जी, भगवान् अपने भक्तों को पैसे ले कर आशीर्वाद नहीं देते, उनकी भावना से प्यार करते हैं. आप इनकी माँ के नाम से पूजा कीजिए, यदि आपको आपत्ति है तो बाक़ी पैसे मै दे दूंगा.”“अरे नहीं भैया, हम अभी पूजा करे देते हैं, पैसे भी रहने दो, बेटी.”पंडित जी ने मंत्रोच्चार शुरू किए..लड़की ने एक बार कृतज्ञता भरी दृष्टि उठा कर सजल को देखा और नैन झुका लिए.लडकी के जाने के बाद सजल ने चरण दास से पूछा-“ये लड़की कौन है, इसे आरती भी क्यों नही दी जाती?““भैया जी, देखने में ये लड़की बड़ी भोली बनती है, पर रात में पास वाले शराब -घर में रात भर नाच कर कमाई करती है. यहाँ चार पैसे चढाते इसकी नानी मरती है.”घ्रृणापूर्ण शब्दों में चरण दास बोला.“मुझे इन बातों से कोई मतलब नहीं है, पर इस मन्दिर में आने वाले सब भक्त जन समान होते है, उनके साथ एक सा व्यवहार होना चाहिए. पैसों से भक्ति नहीं तौली जाती.”गंभीरता से सजल ने कहा.“जी भैया जी, ऐसा ही होगा. ये चरण दास तो पागल है.”विनीत स्वर में पंडित जी ने कहा.घर लौटता सजल सोच रहा था, चरण दास ने कहा वो लड़की बार में नाचने वाली यानी बार-गर्ल है. क्या ये सच हो सकता है,पर क्या ये उसका शौक है या कोई मजबूरी. अपनी सोच को झटक सजल कॉलेज जाने को तैयार होने चला गया, पर वो लड़की उसके दिमाग पर छाई रही. उसका सच जानने को वह बेचैन था.दो दिनों तक सजल मन्दिर नहीं जा सका , पर वो लड़की उसके दिमाग से नहीं उतरी. तीसरे दिन उसे उस लड़की की प्रतीक्षा थी.कुछ देर बाद उदास मुख के साथ उसने मन्दिर में प्रवेश किया. कंधे पर निचोड़ी गई भीगी धोती थी.पहले की तरह ही वह मन्दिर के एक कोने में सिमटी सी खडी थी.आरती के समय हाथ जोड़े वह मन प्रार्थना सी कर रही थी. आरती समाप्त होने पर चरण दास सबके सामने आरती का थाल लिए आरती के साथ भक्तों को प्रसाद दे रहा था. सजल पर एक नज़र डाल, चेहरे पर भरसक मुस्कान ला, चरण दास ने आरती का थाल लड़की की तरफ बढाया. कुछ संकोच के साथ धोती के आँचल में बंधे कुछ सिक्के थाल में डाळ आरती लेती लड़की का चेहरा खुशी से चमक उठा. उसे मन्दिर से बाहर जाते देख सजल भी बाहर निकल आया.लड़की के पास जा कर पूछा-“अब तुम्हारी माँ की तबियत कैसी हैं?”लड़की उस सवाल पर चौंक गई, पर सजल को देख सहज धीमे से जवाब दिया-“ठीक नहीं है. रोज़ कंपकंपी दे कर बुखार चढ़ जाता है. वैद्य जी कहते हैं उसे बड़े डॉक्टर के पास ले जाओ. पर वो तो बहुत पैसे लेंगे.“आवाज़ में मायूसी थी.“तुम माँ को सरकारी अस्पताल में भी तो ले जा सकती हो. वहां तो मुफ्त इलाज होता है.”“दो दिन तक हम लाइन में बैठे रहे पर जब तक नंबर आया, डॉक्टर साहब की ड्यूटी ख़त्म हो गई, वो घर चले गए.”“तुम्हारा नाम क्या है, घर में और कौन –कौन हैं?”“सुजाता, घर में बस हम और हमारी माँ हैं. हमारे बाबूजी गाँव के स्कूल में मास्टर थे. उनकी अचानक मृत्यु से हम बेसहारा हो गए. बाबूजी ने गाँव के बच्चों को विद्या-दान दिया, पर अपने लिए पैसों का मोह नहीं रखा वरना शहर में किसी अच्छे स्कूल में पढ़ा कर ज़्यादा पैसे कमा सकते थे.”“क्या तुमने भी गाँव में कुछ पढाई की है?”“हमने फर्स्ट डिवीजन में हाई स्कूल पास किया था, पत्राचार कार्यक्रम से बारहवीं की पढाई कर रहे थे, तभी बाबू जी चले गए. बाबूजी कहते थे हमें खूब पढ़- लिख कर टीचर बनना चाहिए और गाँव की लड़कियों को आगे बढ़ने में सहायता करनी चाहिए. काश बाबूजी न जाते.”सुजाता की आँखें नम थीं.“तुम्हे एक डॉक्टर का नाम दे रहा हूँ, उनके पास मेरा कार्ड ले जाना वह तुम्हारी माँ का मुफ्त इलाज करेंगे. मै उनसे फोन से बात कर लूंगा. अगर बुरा ना मानो तो जानना चाहता हूँ, तुम यहाँ क्या काम करती हो?”सजल ने सहानुभूति से पूछा.“माँ की बीमारी और पैसों की तंगी से हम परेशान थे, गाँव में कोई काम मिलने का सवाल ही नही था. हमारे गाँव की कमला मौसी अपने साथ गाँव की लड़कियों को शहर में काम दिलाने ले जाती थीं, हमने भी अपने लिए उनसे मदद मांगी थी, पर काश हम यहाँ ना आए होते.”सुजाता चुप हो गई.“क्यों ऐसा क्या हुआ, यहाँ कोई दूसरा काम मिलना इतना मुश्किल नहीं है,”“ये हमारा दुर्भाग्य था हमें शहर के बारे में कुछ पता नहीं था, ना ही यहाँ हमारा कोई परिचित था. मौसी ने कहा शहर में दसवीं पास को कोई नौकरी नहीं मिल सकती, अगर जीना है तो यहाँ होटल में लडकियां नाच कर के पैसे कमाती हैं, तुम भी वही काम कर सकती हो.”सुजाता आगे नहीं बोली.“ये तो तुम्हें गुमराह करने वाली बात है, क्या इसीलिए तुम रात में होटल में - - -. “सजल आगे कुछ नहीं पूछ सका. स्थिति स्पष्ट थी.“पहले तो हम इस काम के लिए तैयार नहीं थे, पर माँ की बीमारी और पैसों की ज़रुरत ने हमें मजबूर कर दिया ,अकेली जान होती तो ज़हर खा कर मर जाते, पर माँ को कौन देखेगा.”सुजाता ने आँचल आँखों से लगा लिया.“परेशान मत हो, कोई राह मिल जाएगी.”सहानुभूति से सजल ने कहा.“हमारा घर आ गया, कमला मौसी ने अपने घर के पास हमें रहने को ये कोठरी दी है.”“क्या मै तुम्हारी माँ से मिल सकता हूँ?’ दरबेनुमा कोठरी को देखते सजल ने पूछा.“नहीं ये जगह आपके पैर रखने लायक नहीं है, हमें माफ़ कीजिएगा.”बंद दरवाज़ा खोल सजल को बाहर विस्मित खड़ा छोड़, सुजाता भीतर चली गई.सजल के मन में सुजाता के लिए बहुत सहानुभूति और दया थी. बेचारी लड़की कितनी मुश्किलों का सामना कर रही है. उसे उसकी दुखद स्थिति से बाहर निकालने का कोई रास्ता निकालना होगा. अचानक यूनीवर्सिटी जाते समय रास्ते में ‘आर्य कन्या कॉलेज’ का बोर्ड देखते सजल को समस्या का हल मिल गया. कॉलेज की प्रिंसिपल कनक लता की बेटी सजल की फेवरिट स्टूडेंट रही है, प्रिंसिपल से सजल का अच्छा परिचय था.आज ही उनसे सुजाता के विषय में बात करनी होगी.शाम को लौटते समय सजल कनक जी से मिलने पहुँच गया.संक्षेप में सुजाता की कहानी बता कर सजल ने कनक जी से पूछा क्या वह किसी प्रकार सजाता की आगे की पढाई के साथ उसे कोई पार्ट टाइम काम भी दे सकती हैं ताकि वह अपना जीवन सुधार सके. कुछ देर सोचने के बाद कनक जी ने कहा-“हमारा कॉलेज दो शिफ्टों में चलता है. सवेरे आठवीं तक की और शाम को दसवीं से बारहवीं की क्लासेज होती हैं. अगर सुजाता सवेरे की शिफ्ट में आ कर छोटी कक्षाओं की लड़कियों की मदद कर सके तो शाम की शिफ्ट में वह बारहवीं की लड़कियों के साथ पढाई कर सकती है. इसके लिए उसे वेतन भी मिलेगा.”“यह तो सुजाता के लिए बहुत अच्छी मदद होगी, पर अभी उसकी माँ बीमार है, उसके ठीक होते ही वह खुशी से आपके कहने के अनुसार काम कर सकेगी. आपकी सहायता के लिए आभारी हूँ.”“आप किसी असहाय लड़की की मदद कर रहे हैं, यह पुन्य का काम है, इसके लिए धन्यवाद की आवश्यकता नहीं है. मुझे भी पुन्य का भागी बनने दीजिए.”मुस्कुरा कर कनक जी ने कहा.सजल से कनक जी का प्रस्ताव सुनते ही सुजाता का चेहरा खुशी से चमक उठा.“क्या ये सच हो सकता है? आप तो हमारे लिए भगवान् हैं. आपने जिन डॉक्टर के पास भेजा था, उन्होंने कहा है, माँ जल्दी ठीक हो जाएगी, घबराने की कोई बात नहीं है.”“मेरे ख्याल से तुम प्रिंसिपल साहिबा से मिल लो, शायद वह तुम्हारी कुछ और भी मदद कर सकें, वह अकेली ही रहती हैं.”कनक वर्मा का पता दे कर सजल ने सलाह दी.“जी, हम कल ही उनसे मिल आएँगे. आपका धन्यवाद देने को हमारे पास शब्द नहीं हैं.”“उसकी कोई ज़रुरत नहीं है, अगर तुम्हारा सपना पूरा हो जाए तो मुझे खुशी होगी.”.सुजाता की सीधी-सच्ची बातों से इकलौती बेटी की माँ कनक जी के ह्रदय में उसके प्रति करुणा और स्नेह की भावनाएं उमड़ आईँ. उसके घर की स्थिति जान उन्होंने उसे और उसकी माँ को अपने बंगले के आउट हाउस में रहने की जगह देने का निर्णय ले लिया. वैसे भी पति की मृत्यु और विवाह के बाद बेटी के विदेश चली जाने से वह उस बड़े बंगले में अकेली ही रह रही थीं. कनक जी के चरण स्पर्श कर सुजाता ने माँ के स्वस्थ होते ही उनके साथ रहने और उनके अनुसार कार्य करने का वादा कर के खुशी मन से विदा ली थी.दस दिनों बाद छोटी सी अटैची और कपड़ों की एक गठरी के साथ दोनों माँ बेटी कनक लता जी के बंगले पहुंची थीं. श्रद्धा से कनक जी को प्रणाम करती सुजाता ने अपनी माँ का परिचय दिया था.“मैडम, हम आपके बहुत आभारी हैं, ये मेरी माँ शन्नो देवी हैं हम दोनों आपकी सेवा में कोई कमी नहीं रक्खेंगे.”सुजाता ने नम्रता से कहा.“तुम्हारी सहायता करके मुझे खुशी होगी.सवेरे स्कूल की पारी में क्या तुम पांचवी और छठी कक्षाओं को गणित पढ़ा सकोगी? दूसरी पारी में तुम बारहवीं कक्षा के साथ पढाई कर सकोगी, सुजाता?”“जी मैडम जी, गणित मेरा प्रिय विषय है, आपको निराश नहीं करूंगी. आपके घर के कामों में मेरी माँ सहायता करेगी, माँ खाना बहुत अच्छा बनाती है, क्यों ठीक कह रहे हैं ना माँ?”“अरे ये तो बड़ी अच्छी बात है, मेरी बेटी अच्छे खाने की शौकीन है.”मुस्कुरा कर कनक जी ने कहा.“आपकी बेटी कहाँ हैं?”सुजाता ने चारों तरफ दृष्टि डाल कर पूछा.“पिछले महीने उसकी शादी हो गई और पति के साथ लन्दन चली गई, अब तुम्हें उसकी जगह भरनी है.”“ये तो हमारा सौभाग्य होगा. आपको माँ ही मानूंगी.” सच्चाई से सुजाता ने कहा.“ठीक है, अभी तुम लोग आराम करो, रामू इन्हें इनका कमरा दिखा दो और रात का भोजन भी करा देना. सुजाता, तुम सवेरे आठ बजे स्कूल चली जाना वहां मिस नाथ तुम्हें तुम्हारी कक्षाएं दिखा देंगी. वह जूनियर स्कूल की इंचार्ज हैं.”“जी मैडम, हम ठीक समय पर पहुँच जाएंगे. माँ के लिए क्या आदेश है?“अभी वह बीमारी से उठी हैं, उन्हें कुछ दिन आराम करने दो, अभी तुम लोगों के भोजन की व्यवस्था रामू ही करेगा, बाद में अगर तुम चाहो तुम स्वयं अपना भोजन बनाने को स्वतन्त्र हो.”बहुत सवेरे सुजाता तैयार हो कर स्कूल पहुँच गई. एक नई राह पाकर चेहरे पर खुशी की आभा थी. मिस नाथ को अभिवादन कर के अपना परिचय दिया था. मिस नाथ स्नेह से उसे उसकी कक्षाओं में ले गईं और बच्चों से उसका परिचय कराया. बच्चों ने ज़ोरदार शब्दों में नमस्ते टीचर कहा तो सुजाता सकुचा गई, ये संबोधन उसके लिए नया जो था.समय अविराम गति से चल रहा था. अपने सद्व्यवहार के कारण सुजाता और उसकी माँ दोनों ही कनक जी की विश्वासपात्र बन गईं. कनक जी ने सुजाता और शन्नो को पहिनने के लिए बेटी के सलवार-सूट और अपनी कुछ अच्छी धोतियाँ दे कर प्यार से कहा-“शहर और स्कूल में अच्छे कपडे पहिनने होते हैं, इन्हें लेने में संकोच मत करो. इन्हें प्यार से दे रही हूँ.”“आपने हमारी इतनी मदद की है, हमें मुश्किल के समय सहारा दिया है, आपकी दी हुई चीज़ें सिर आँखों. आपके कारण हम सम्मान से रह पा रहे हैं. हम आपके बहुत आभारी हैं.”शन्नो ने कहा.अब सुजाता की माँ कनक जी को बेड टी देने से ले कर उनका मनपसंद नाश्ता और लंच-डिनर भी बनाने लगी थीं. सुजाता और उसकी माँ अब घर के सदस्यों जैसी बन गई थी. सजल कभी यूनीवर्सिटी से लौटते समय या अवकाश के दिन सुजाता और उसकी माँ से मिलने जाता रहता था. सुजाता के अनुपम भोले सौंदर्य उसकी सच्चाई और मीठे स्वभाव के प्रति उसके मन में आकर्षण था. उसकी प्रथम छवि उसके कंप्यूटर पर ही नहीं उसके मन में भी अंकित थी, पर सुजाता के सम्मुख कुछ भी कहने का साहस नहीं था. सुजाता उसे आदर और सम्मान की दृष्टि से ही देखती थी. उसकी नज़रों में सजल उनके लिए भगवान् सदृश्य था जिसने उसे नई ज़िंदगी दी है, उसे सम्मान ही दिया जा सकता है. सुजाता की माँ अपने सीमित साधनों में सजल की खातिर करने में कोई कमी नहीं रखती थी. दोनों का रोम-रोम सजल का आभारी था.एक दिन सजल के आने पर शन्नो ने सजल से कहा -“सजल बेटा, तुम ही इस सुजाता को समझाओ, सारे दिन स्कूल-कॉलेज करने के बाद इसी छोटे से कमरे में कैद बैठी रहती है. बाहर की खुली हवा में भी तो जाना ज़रूरी है. इसके मन में डर बैठ गया है कहीं कोई इसे पहिचान ना ले.”“आप ठीक कहती हैं, मौसी. इस तरह डरने से ज़िंदगी नहीं काटी जा सकती. चलो सुजाता, आज हम पास वाला पार्क देखने चलेंगे. बसंत ऋतु है, रंग-बिरंगे फूलों से पार्क की शोभा देखते ही बनती है. तुम्हें भी तो फूलों से प्यार है.”सजल ने खुशी से कहा.”“नहीं, हम नहीं जा सकते. आज लड़कियों की परीक्षा की कापियां जांचनी हैं.”सुजाता ने बहाना बनाया.”अरे वो तो तुम्हारा रोज़ का कम है, पार्क से एक घंटे में लौट आएँगे. ये बहाना नहीं चलेगा.”“सजल बेटा ठीक ही तो कह रहे हैं, ऐसे मुंह छिपा कर कब तक बैठी रहेगी.. तू अपने बाबूजी की बहादुर बेटी है, वह तुझ पर नाज़ करते थे, अपने डर को तो हराना ही होगा.”“ठीक कहती हो, माँ. हम भूल गए थे कायर कभी सफल नहीं हो सकते. चलिए सजल जी.”सुजाता में अचानक उसका खोया साहस जाग उठा.बाग़ अपने पूरे यौवन पर था.चारों तरफ रंग-बिरंगे फूलों का मेला सजा हुआ था. तितलियाँ उन पर कभी बैठतीं और कभी उड़ जातीं. सुजाता का चेहरा खुशी से चमक रहा था. सजल उसे मुग्ध दृष्टि से निहारने से अपने को नहीं रोक सका. अचानक सुजाता बोल उठी-“इतने सुन्दर फूलों को लोग क्यों तोड़ते हैं. शाखों पर झूलते फूल कितने अच्छे लगते हैं.”“मुझे तो यही पता है कि प्रेमिका अपने प्रेमी से ऐसे ही फूलों की अपेक्षा रखती है. प्रेम जताने के लिए इन फूलों से अच्छा और कौन सा तरीका है?”मुस्कुराते सजल ने सुजाता को देखा.“प्रेम जताने के लिए क्या किसी सहारे की ज़रुरत होती है, वो तो अपने आप पता चल जाता है. मुझे तो फूल तोड़ने वाले अपराधी लगते हैं. फूलों को भी शाख पर पूरा जीवन जीने का अधिकार है.” फूलों को प्यार से निहारती सुजाता ने सच्चाई से कहा.“बच गया.” सजल धीमे से बुदबुदाया.अभी कुछ देर पहले वह एक फूल तोड़ सुजाता को देने वाला था. मन में तो था वो फूल सुजाता की लंबी वेणी में लगा पाता.“कुछ कहा आपने?”कजरारे नयन उठाकर सुजाता ने पूछा.“नहीं, सोच रहा था, तुम प्रेम के बारे में इतना सब कैसे जानती हो?”“हमने किताबों में पढ़ा है. बाबूजी हमारे लिए अच्छी-अच्छी कहानियों की किताबें लाते थे. हमें मन्नू भंडारी, प्रेमचंद, शरत चन्द्र की कहानियां बहुत अच्छी लगती थीं. गुलेरी जी की कहानी ‘उसने कहा था’ और धर्मवीर भारती जी की ‘गुनाहों का देवता’ पढ़ कर हम हम बहुत रोए थे” भोले चेहरे पर उदासी स्पष्ट थी.“उन कहानियों में ऐसा क्या था जिसने तुम्हें रुला दिया.”“आप जब खुद पढ़ेंगे तब जान सकेंगे. आपस में इतना प्यार करने वाले अंत में मिल नहीं सके.”“इस दुनिया में सब कुछ मनचाहा तो नहीं मिल सकता,सुजाता.”अचानक सजल गंभीर हो उठा.“आपकी यूनीवर्सिटी में तो बहुत ऎसी किताबें होंगी .क्या हमें पढने को मिल सकती हैं?”दो उत्सुक नयन सजल के चेहरे पर निबद्ध थे.“हाँ, किताबें तो बहुत होंगी,पर मुझे उनके बारे में कुछ पता नहीं है. कभी तुम मेरे साथ चल कर लाइब्रेरी से खुद किताबें चुन लेना.”“क्या ये सच हो सकता है? परीक्षा के बाद हमारी छुट्टी है, क्या हम आपके साथ चल सकते हैं?”“पहले कहानियां छोड़ कर परीक्षा की तैयारी करो. फर्स्ट डिवीजन आने पर तुम्हें यूनीवर्सिटी में आसानी से एडमीशन मिल सकेगा.”सजल ने गंभीरता से कहा.“यूनीवर्सिटी की पढाई का तो बहुत खर्चा होगा?स्वर में चिता थी .“अच्छे नंबर आने पर ज़रुरतमंद विद्यार्थियों को स्कॉलरशिप मिल सकती है. वैसे तुम्हारे स्टूडेंट्स तुम्हारी टीचिंग से बहुत खुश हैं और कई स्टूडेंट्स तुमसे ट्यूशन भी लेना चाहते हैं. खर्चे की चिता छोड़ दो.”विश्वास से सजल ने समझाने के अंदाज़ में कहा.अचानक सुजाता को भान हुआ संध्या गहराने लगी थी. एक-दूसरे के साथ बातों में समय का उन्हें ध्यान ही नहीं रह गया था.‘”बहुत देर होगई, माँ परेशान होंगी. हमें घर चलना चाहिए.”“माँ जानती हैं मै तुम्हारे साथ हूँ, वह परेशान नहीं होंगी.”दूसरे दिन यूनीवर्सिटी लाइब्रेरी में सजल ने जब “गुनाहों का देवता” उपन्यास की मांग की तो लाइब्रेरियन चौंक गया, मज़ाक में पूछा-“क्या बात है प्रोफ़ेसर साहिब,हिस्ट्री छोड़ कर अब हिन्दी विषय पढ़ाने वाले हैं?” मै बदनाम हो जाऊंगा.”“मुझे नही, किसी और को पढने के लिए चाहिए. वैसे ऎसी ही कुछ और किताबें भी दे सकते हैं?”“पता नहीं, इस उपन्यास में ऐसा क्या है, लडकियां इसके पीछे दीवानी हैं, अभी कुछ किताबें लडकियां रिटर्न कर के गई हैं, आप देख सकते हैं.”गुनाहों का देवता के साथ कुछ और किताबें लेकर सजल सुजाता के घर पहुंचा था. किताबें देख कर सुजाता खुशी से खिल उठी. किताबों के पृष्ठ पलटती सुजाता को देख कर उसकी माँ ने कहा“बस अब पढाई भूल कर ये कहानियां पढेगी. पहले भी इसका यही हाल था, इसके बाबूजी कहते थे, किताबें पढने से दिमाग की खिड़कियाँ खुलती हैं, लिखने की स्टाइल आती है.”“हाँ माँ, इसीलिए तो हम क्लास में हमेशा फर्स्ट आते थे,”कुछ गर्व से सुजाता ने कहा.“अब इस परीक्षा में ये बात सिद्ध करनी है, सुजाता वरना मै बदनाम हो जाऊंगा, किताबें जो लाया हूँ.”सजल ने परिहास किया.“आपको निराश नहीं करूंगी.”सुजाता ने सच्चाई से कहा.“ठीक है, कुछ दिनों के लिए पापा के कुछ काम देखने के लिए गाँव जा रहा हूँ,लौट कर मिलूंगा.”दिन बीत रहे थे, सुजाता की परीक्षा समाप्त होगई. उसे पूरा विश्वास था, उसे फर्स्ट डिवीजन मिलेगी. अब उसकी आँखों में सपने आने लगे थे. उन सपनों में सजल का विश्वासपूर्ण चेहरा अनायास ही कौंध जाता था. सुजाता सोचती शायद उसकी वजह सजल की उसके लिए की गई सहायता थी. परीक्षा समाप्त होने पर खाली समय काटने के लिए सजल द्वारा लाई गई किताबें पढती सुजाता को सजल याद आने लगता. उसकी कमी खलती, उसे सजल के आने की प्रतीक्षा रहती. लगता जैसे सजल के बिना ज़िंदगी में कोई आनंद ही नहीं रह गया था. उसकी अन्यमनस्कता देख शन्नो ने पूछा था-“क्या बात है, सुजाता,किन ख्यालों में खोई रहती है? एक बात याद रख अपनी सीमा से आगे बढ़ने की मत सोच, सपने हमेशा सच नहीं होते.”माँ का मन जैसे बेटी के मन को पढ़ गया था.“हम अपनी सीमा जानते हैं, माँ, कभी अपनी सीमा नहीं भूल सकते.” उदासी से सुजाता ने जवाब दिया.बीस दिनों बाद सजल को देख सुजाता का चेहरा फूल जैसा खिल गया .उतावली सी बोली-“आपने इतने दिन लगा दिए, आपने तो कहा था कुछ दिनों को जारहा हूँ.”“पन्द्रह-बीस दिन कुछ ही दिन होते हैं, सुजाता, क्या मुझे मिस कर रही थीं.’’ मुस्कुराते सजल ने पूछा.‘हाँ --नहीं, असल में आप जो किताबें लाए थे वो पढ़ लीं, इसलिए बोर होरहे थे.”सुजाता ने बात बनाई.“ठीक है, पर मैने तुन्हें सच में मिस किया.”सुजाता को गहरी दृष्टि से देखते सजल ने कहा.“अरे सजल बेटा, कब आए? कल शिवरात्रि है सो कुछ फलाहार की सामग्री लाने गई थी.”बाहर से आई शन्नो ने हाथ का झोला रख कर कहा.“अरे वाह, तब तो आपके हाथ का बना प्रसाद मुझे भी मिलेगा.” सजल ने खुशी से कहा.‘ज़रूर, पर तुम्हारे घर जैसा प्रसाद हम कहाँ बना पाएंगे. हम तो बस कुछ हल्का सा नाम का बना लेते हैं. पहले तो हम मन्दिर में जाकर शिव जी की पूजा करके प्रसाद लेते थे, पर अब तो सुजाता मन्दिर जाने के नाम से भी डरती है.”उदास स्वर में शन्नो ने कहा.“अरे ये क्या बात हुई, इसी बात पर कल आप दोनों को अपने मन्दिर ले चलूँगा. आप तैयार रहिएगा.”“नहीं, हम उस मन्दिर में नहीं जाएंगे. आप माँ को ले जाइएगा.”सुजाता ने डरी आवाज़ में कहा.“कम-ऑन सुजाता, तुम अपने अतीत को कब तक ढोती रहोगी? कल हम उसी मन्दिर में जाएंगे, तैयार रहना. मजाल है मेरे साथ कोई तुम्हे कुछ कह सके.”सजल ने दृढ स्वर में कहा.“अगर किसी ने हमें पहिचान लिया तो?”सुजाता शंकित थी.“तुम अपनी नई पहिचान और अपना नया परिचय भूल रही हो, गुरुआनी जी.” सजल ने परिहास किया. दूसरे दिन शन्नो सवेरे से ही तैयार होगई. शंकित मन से सुजाता भी जाने को तैयार थी. निश्चित समय पर सजल आ गया. मन्दिर के बाहर ही शन्नो ने श्रद्धा से हाथ जोड़, मन्दिर में प्रवेश किया.मन्दिर में भक्त भारी संख्या में उपस्थित थे. शिव जी को दूध से स्नान कराने के लिए होड़ लगी हुई थी. चरणदास सबको आरती लेने का सौभाग्य दे रहा था. आरती लेने के लिए स्त्री और पुरुषों की अलग पंक्तियाँ बनी हुई थीं. सुजाता की चांस आने पर जब उसने एक पांच रूपए का नोट रख कर आरती लेने का उपक्रम किया तो उसे गहरी नज़र से देखता चरण दास उसे पाहिचान गया.“अरे वाह, तेरा तो रंग-रूप और पहिनावा ही बदल गया. लगता है आजकल रात में बहुत कमाई हो रही है. ऐसे घटिया काम करके मन्दिर को अपवित्र करते शर्म नहीं आती?” चरण दास ने जोर से कहा.“कैसा काम, क्या कह रहे हो भाई?” लोगों की उत्सुकता बढ़ गई.“अरे शराबखाने की नचनिया है. गंदी कमाई करती है.”घृणा से चरण दास ने सूचना दी.“इसे बाहर निकालो, ये मन्दिर गंदा कर देगी, बाहर निकालो.” समवेत स्वर गूंजे.पुजारी जी के पास अपने पापा द्वारा मन्दिर के लिए भेजी गई धनराशि का चेक देने गए सजल को शोर सुनाई दिया. चेक पुजारी जी को देकर सजल लोगों की भीड़ के पास पहुंचा. सुजाता की आँखों से बहते आंसू देख सजल सब समझ गया.“क्या बात है, आप लोग मन्दिर में शोर क्यों मचा रहे हैं?” सजल ने कड़ी आवाज़ में पूछा.“भैया जी,ये लोग इस नचनिया को मन्दिर में आने पर शोर मचा रहे हैं.”डरते हुए चरण दास ने कहा.“ऎसी बकवास करते शर्म नहीं आती? खबरदार जो एक भी शब्द और निकाला.”सजल ने क्रोध से कहा.“अरे भाई, आप नहीं जानते. चरण दास सच कह रहा है. हमने भी इसका नाच देखा है. क्या गज़ब का नाचती है. आजकल दिखाई नहीं देती. अपना नया नाच घर बता दे, हम दीवाने पहुँच जाएंगे.”घृणित दृष्टि और शब्दों से एक व्यक्ति बोला. बात समाप्त होते ही सजल का ज़ोरदार तमाचा उस व्यक्ति के गाल पर पडा था.“बकवास बंद करो. अभी बताता हूँ ये कौन है.”चरण दास की आरती की थाली से कुमकुम उठा, सजल ने सुजाता की सूनी मांग को रंग दिया. लोग स्तब्ध देखते रह गए.“अब याद रखना, ये मेरी पत्नी सुजाता है. आपमें से कई लोगों के बच्चों को शिक्षा देकर उनका जीवन सुधार रही है. एक महिला का अपमान करते हुए आपको शर्म आनी चाहिए. अगर आपकी ऎसी ही भावनाएं हैं तो इस मन्दिर में आकर इसकी पवित्रता नष्ट करने आने का आपको अधिकार नहीं है. निकल जाइए यहाँ से- - - .” स्तब्ध लोग सजल के आवेश में तमतमाए मुख को देख बाहर जाने लगे.“ये क्या किया बेटा? ऐसा करना ठीक नही हुआ. तुम्हारे परिवार में इसको स्वीकार नहीं किया जाएगा.”भयभीत स्वर में शन्नो ने सच्चाई कही.“आप परेशान ना हों, आप और सुजाता घर जाइए. अपने परिवार वालों से मिल कर स्थिति स्पष्ट कर के आता हूँ. मुझे विश्वास है, वे लोग समझ जाएंगे.”अपनी बात समाप्त कर सुजाता पर एक दृष्टि डाल सजल तेज़ी से चला गया.स्वप्नवत सुजाता माँ के साथ घर पहुंची थी. अचानक ये क्या हो गया. बह सोच रही थी, उसका अपमान सजल को सहन नहीं हो सका और उसी आवेश में सजल जो कर बैठा, वह सत्य नहीं हो सकता. सजल ने जो किया वो बस कुछ क्षणों का उन्माद भर था, उसमें प्यार तो संभव ही नहीं है.अब सुजाता क्या करे?शन्नो भी बेटी के बहते आंसू देख स्थिति समझ रही थी. काश वे दोनों मन्दिर गई ही ना होतींउधर सजल के घर पहुँचने के पहले कुछ शुभचिंतकों द्वारा खबर नमक मिर्च लगा कर पहुंचा दी गई थी.सजल को देखते ही उसे घर में कदम भी ना रखने के लिए पिता दहाड़ उठे.“तुझ जैसे कुल कलंकी के लिए अब इस घर में कोई जगह नहीं है. हमारे लिए तू मर गया. खबरदार जो इस घर में कदम भी रखा.”“पापा आप गलत समझ रहे हैं, सुजाता एक अच्छे परिवार की लड़की है. यहाँ के स्थानीय स्कूल में अपनी पढाई के साथ छोटी कक्षाओं में पढाती भी है.”“बकवास बंद कर, सारी सच्चाई जानता हूँ. मेरी आँखों के सामने से हट जा वरना मै जहर खा कर अपनी जान दे दूंगा. यही दिन दिखाने के लिए शहर - -“आवेश में शब्द अटक गए.“पापा, आप शांत हो जाइए, मेरी बात तो सुन लीजिए- - - “सजल ने कुछ कहना चाहा.“अब सुनने को क्या बाक़ी रह गया है,कुलकलंकी. जा उसी नचनिया के साथ नाच.”आवेश में उनका कंठ रुद्ध हो गया और वह गिर पड़े.सजल द्वारा उन्हें उठाने के प्रयास में वह मूर्छित हो गए. डॉक्टर ने चेक- अप कर के बताया, उन्हें माइल्ड हार्ट अटैक पड़ गया था. उस स्थिति में उन्हें किसी प्रकार का सदमा नहीं लगना चाहिए वरना स्थिति गंभीर हो सकती है. डॉक्टर ने सजल को समझाया था, अच्छा हो वह झूठ में ही उनकी मनचाही बात स्वीकार कर ले, बाद में उनके स्वस्थ होने पर सच्चाई बता सकता है. होश आते ही सजल को सामने देख वह कुछ कहते उसके पूर्व ही सजल ने विनीत स्वर में कहा-“मेरे अपराध को क्षमा कर दीजिए. उस लड़की से कोई संबंध नहीं रखूंगा. वह चली गई है.”“सच कह रहा है? अगर ऐसा है तो पंडित जी से कल ही पूजा करानी होगी और तुझे प्रायश्चित करना होगा.”उनकी आवाज़ में संतोष था.“जी पापा, आप जैसा कहेंगे करूंगा, पर आपको नहीं खो सकता.”सजल का स्वर दुखी था. मन में चिंता थी, न जाने सुजाता कैसी होगी, क्या सोच रही होगी. उसे समझाने जाना ही होगा. कुछ समय के बाद सब समस्या सुलझानी ही होगी. अब सुजाता उसकी पत्नी है, उसे उसका अधिकार मिलना ही चाहिए.दो दिन बाद पिता के सो जाने के बाद सजल चुपचाप सुजाता से मिलने निकला था. मन शंकित था, न जाने सुजाता उसके विषय में क्या सोच रही होगी. उसे कायर समझ उससे नफरत तो नहीं कर रही होगी. जैसे भी हो, उन्हें पिता के स्वस्थ होने तक शांत रहना होगा.सुजाता के घर दूसरा ही दृश्य था. उसे देखते ही शन्नो ढाढें मार रो पड़ी. रोते-रोते अस्फुट शब्दों में बता सकी कि मन्दिर से लौटने के बाद सुजाता एकदम चुप थी. दूसरी सुबह माँ के उठने के पहले ये चिट्ठी सजल के नाम छोड़ कर कहीं चली गई. अपना कोई पता भी नहीं दे गई.“ना जाने कहाँ, कैसी होगी मेरी बेटी?” सजल को चिट्ठी देती शन्नो फिर रो पड़ी.स्तब्ध सजल क वो कुछ पंक्तियाँ पढ़ गया-“सजल जी,आज अचानक अपने उच्च संस्कारों के कारण आप मेरा अपमान नहीं सह सके. जानती हूँ, यह घटना प्रेम के कारण नहीं बनी थी. आपके साथ प्रेम की कल्पना भी करने का दुस्साहस नहीं कर सकती. मेरी जगह कोई भी लड़की होती, तो आप उसके सम्मान की रक्षा के लिए वही करते जो आपने मेरे साथ किया. इस अचानक उत्पन्न स्थिति के कारण अपने को किसी भी प्रकार के बंधन में नही समझिएगा, मेरी ओर से आप हर बंधन से मुक्त हैं. आपने मुझे गर्त से निकाल कर नया जीवन दिया है, उसके लिए आजीवन आभारी रहूंगी.जा रही हूँ, पर विश्वास दिलाती हूँ, कभी कोई कलंकित या अमानजनक कार्य नहीं करूंगी, मेरी स्मृति में आप सदैव सूर्य सदृश्य प्रेरक और प्रकाशित मार्गदर्शक रहेंगे. एक अनुरोध है यदि संभव हो माँ को मेरी कमी सहने की शक्ति दीजिएगा. मेरी खोज ना करने की प्रार्थना है, शायद इतने समय का ही साथ था.विदा और प्रणाम,सुजाता.सजल स्तब्ध रह गया, उसने आने में विलम्ब कर दिया. काश वह सुजाता को बता पाता, वह घटना आकस्मिक नहीं थी, जो कुछ भी हुआ वो सजल के मन में सुजाता के प्रति प्रेम के कारण ही हुआ था. काफी पहले से वह अपने मन को जान गया था, वो सुजाता को बेहद चाहने लगा है, वह यह भी समझ गया था, सुजाता भी उसे चाहती है, पर समय और अवसर की प्रतीक्षा आवश्यक थी. काश अपने पिता को झूठी सांत्वना देने का अपराध न किया होता. शन्नो का रो-रो कर बुरा हाल था. इतनी मुश्किलों के बाद बेटी को राह मिली थी, अब न जाने कहाँ भटकेगी, न जाने किस समस्या का सामना करेगी. कनक जी को भी वह कुछ नहीं बता कर गई थ,सब परेशान थे.“घबराइए नहीं मौसी. मै सुजाता को खोज लाऊंगा. वह मेरे ही कारण घर छोड़ कर गई है, मै ही उसे वापिस लाऊंगा.”दृढ़ता से अपनी बात कह कर सजल वापिस आया था.दिन माह और लंबे चार वर्ष बीत गए, सजल की हज़ार कोशिशों के बावजूद सुजाता का कहीं कोई पता नहीं था. सजल के विवाह के लिए प्रस्ताव आ रहे थे, पर सजल ने दृढ़ता से कह दिया-“पापा के जीवन के लिए मैने अपने मन के सत्य को नकारा है, विवाह मेरे लिए असंभव है.”छुट्टी के दिन चाय के साथ उस दिन के न्यूज़ पेपर पर नज़र डालता सजल चौंक गया. उस अप्रत्याशित खबर को पढ़ते हुए सजल के चेहरे पर खुशी चमक उठी. सुदूर झारखंड के आदिवासी क्षेत्र में “मदर मार्था वेलफेयर होम ” में रहने वाली सुजाता शर्मा ने अपने अथक परिश्रम से न सिर्फ प्रथम श्रेणी में एम ए की परीक्षा उत्तीर्ण की है वरन प्रशासनिक सेवा में भी सफलता प्राप्त की है. अपने दुखद अतीत के कारण सुजाता जी, का संकल्प है कि वह अपने पद का सदुपयोग असहाय लड़कियों की सुरक्षा और सम्मान के लिए करेंगी.खुशी से उमगता सजल शन्नो के पास पहुंचा था. अंतत:वह अपनी सुजाता को पा ही गया था.“क्या यह सच हो सकता है, हमारी बेटी कलक्टर बन गई है?” खुशी से शन्नो की आँखें बरसने लगीं.“हाँ, मौसी, अब जल्दी ही आप अपनी बेटी से मिल सकेंगी. उससे मिलने जा रहा हूँ.”“पापा क्या आपके घर में एक कलक्टर बहू आ सकती है?”समाचार पत्र दिखाते सजल ने खुशी से पूछा.“हमारे भाग्य में बहू का सुख कहाँ है, वो भी कलक्टर बहू कह कर क्या मज़ाक कर रहा है?”“आप पहिचान नहीं रहे हैं, यह वही लड़की है, जिसके साथ मैने विवाह किया था और आपने उसके लिए अपशब्द कह कर घर में उसका प्रवेश निषिद्ध कर दिया था. आपकी जिन्दगी के लिए मै ने उसे खो दिया था. अब अपने अपराध के लिए उससे क्षमा मांग कर मुझे अपनी गलती का प्रायश्चित करना है. मै घर छोड़ कर जा रहा हूँ.”“नहीं बेटा, मुझे इतना बड़ा दंड मत दे, मेरी भूल के कारण तू विवाह ना कर, जोगी बन गया है. मै खुद तेरे साथ चल कर उससे क्षमा मागूंगा. अपने बूढ़े पिता को अकेला मत छोड़ कर जा.”वह रो पड़े.“नहीं, उसकी आवश्यकता नहीं है. मुझे अपनी सुजाता पर विश्वास है. उसका निर्णय मुझे मान्य होगा. वैसे भी उसे इस घर में ला कर उसका अपमान नहीं करूंगा” इतना कह कर सजल घर से चला गया.“आप यहाँ, कैसे क्यों?”अचानक सजल को अपने सामने देख सुजाता चौंक गई. चेहरे पर खुशी की चमक आगई, पर अनजाने ही मुंह से ये शब्द निकले थे –“कमाल है, लंबे चार वर्षों बाद अपने पति को देख कर यह कैसा प्रश्न, सुजाता? क्या इतने वर्षों तक मेरी याद नहीं आई?’सजल का स्वर व्यथित था.“आप क्या आज भी एक झूठे बंधन को सत्य मानते हैं? आप भी जानते हैं उस दिन जो हुआ अचानक उत्पन्न परिस्थिति का परिणाम था, इसीलिए अपने पत्र में आपको बंधन-मुक्त कर आई थी. आपका परिवार मुझे कभी स्वीकार नहीं करेगा.”“नहीं सुजाता, वो मेरे जीवन का सत्य था, अन्यथा आज तक तुम्हारी स्मृति में अविवाहित रह कर तुम्हारी प्रतीक्षा नहीं कर रहा होता. तुम्हें अपने से ज़्यादा प्यार किया है और मुझे विश्वास था, मेरी प्रतीक्षा पूर्ण होगी. यह भी जानता हूँ तुम भी मुझे बहुत चाहती हो. तुम्हें बताना चाहता हूँ, मेरे परिवार में तुम्हारा स्वागत है, पिताजी को अपनी भूल पर पछतावा है..”विश्वासपूर्ण शब्दों में सजल ने कहा.“मानती हूँ आपने मुझे नव जीवन दिया था, पर आपके जीवन में आपकी पत्नी बन कर रह पाना मेरी नियति नहीं है. मुझे क्षमा करें, यह सौभाग्य मेरा नहीं हो सकता. आपके मार्ग-दर्शन और प्रेरणा से अब तो मुझे अपनी राह मिल गई है, अब मै अपना जीवन सम्मान के साथ जी सकती हूँ.”शांत स्वर में सुजाता बोली.“मुझे तुम्हारी सफलता पर गर्व है, तुम्हारी सफलता मेरा गौरव है. सुजाता. तुम्हारी मेधा और आत्मविश्वास पर मुझे विश्वास था पर क्या अपनी सफलता की कहानी मुझे नहीं सुनाओगी?”“ज़रूर सुनाऊंगी, आज भी वह दिन कल की तरह से याद है.” कुछ पल के मौन के बाद सुजाता बोली“झरते आंसुओं के सैलाब के साथ जो ट्रेन खड़ी थी , उसमें चढ़ गई थी. कम्पार्टमेंट में सिस्टर मारिया कुछ आदिवासी लड़कियों के साथ दिल्ली से लौट रही थीं. उन लड़कियों ने राष्ट्रीय स्तर पर हॉकी में ट्रॉफी जीती थी. मुझे आंसू बहाते देख सिस्टर सब समझ गईं तेज़ आवाज़ में कहा था-“अपने आंसू पोंछ डालो, इन्हें बहा कर कुछ नहीं मिलेगा. अपनी लड़ाई तुम्हें खुद लडनी होगी. इन लड़कियों को देखो इन्होंने अपने साहस और दृढ निश्चय से आज अपनी मंजिल पा ली है. इन्होंने अपना दुःख, और अपने आंसू भुला कर नई सम्मानपूर्ण ज़िंदगी पाई है. मुझे यकीन है, हिम्मत से तुम अपना जीवन संवार लोगी. अगर चाहो तो हमारे साथ तुम “मदर मार्था वेलफेयर होम” चल कर नव जीवन पा सकती हो.”उनकी बातों ने मुझे एक नई शक्ति दी थी. वर्षों पहले आदिवासी लड़कियों की दयनीय स्थिति देख कर मदर ने इस वेलफेयर होम की स्थापना की थी. आज तक न जाने कितनी लड्कियाँ यहाँ अपना जीवन संवार चुकी हैं. “मदर मार्था वेलफेयर होम” में अपनी पढाई करने के साथ छोटी लड़कियों को पढ़ाते हुए अपना अतीत भुला रही थी, पर माँ और आपकी याद बेचैन करती थी.”अचानक सुजाता मौन हो गई.“हाँ शन्नो मौसी ठीक हैं और अब तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही हैं. वैसे यह मेरी खुशकिस्मती है कि तुम मुझ नाचीज़ को भी याद करती थीं..”सजल ने हंसते हुए कहा.““आप ही तो मेरे प्रेरक थे अन्यथा मुझमें इतना साहस कहाँ से आता? सिस्टर ने सलाह दी थी, अपने अतीत के अपमान को धोने के लिए हाथ में कोई शक्ति होनी आवश्यक है, तभी मैने निर्णय लिया कि प्रशासक के रूप में यह कार्य करना संभव होगा. असहाय और दुखद स्थिति में जीने के लिए विवश हुई स्त्रियों को सम्मान दिलाना मेरे जीवन का संकल्प होगा.” सुजाता के मुख पर विश्वास की चमक थी.‘’ तुमने नारी शक्ति को सार्थक किया है. तुमसे एक सच जानना चाहता हूँ , तुम्हें अपनी पत्नी बना कर अकेला छोड़ आया क्या मुझे मेरे उस अपराध की क्षमा नहीं मिल सकेगी, सुजाता?” सजल का स्वर आहत था.“आप किस अपराध की बात कर रहे हैं? आप तो मेरे आराध्य हैं, आज आपकी ही प्रेरणा से यहाँ तक पहुंच सकी हूँ. आपकी अपराधिन तो मै हूँ जो आपको अपना पता बताए बिना इतनी दूर आगई.”“तो सच कहो, मुझ पर विश्वास तो करती हो, सुजाता?”गंभीर स्वर में सजल ने सवाल किया.“अपने से ज़्यादा, आप पर विश्वास है. आपके विश्वास ने ही तो मुझे यहाँ तक पहुंचाया है.”“अगर ऐसा है तो मेरी बात मान लो. तुम्हें विश्वास दिलाता हूँ, हम दोनों अपने –अपने कार्य - क्षेत्र में पूरी सच्चाई के साथ अपने कर्तव्यों को पूर्ण करेंगे.हमारा विवाह हमें अपने कर्तव्य से विमुख नहीं होने देगा दूर रह कर भी हम ज़रुरत के समय हमेशा साथ होंगे और भाग्य से जब भी हम दोनों को साथ होने के अवसर मिलेंगे तो जीवन का पूरा आनंद लेंगे. बोलो क्या तुम्हे, मेरा प्रस्ताव स्वीकार है?”सजल की विश्वास पूर्ण दृष्टि सुजाता के मुख पर निबद्ध थी.“आपके शब्दों पर अविश्वास कैसे कर सकती हूँ ?आज तो अपने भाग्य से ही ईर्षा हो रही है. सपने भी सच हो सकते हैं, ये आज ही जान सकी हूँ.” सुजाता के सुन्दर मुख पर खुशी की चमक थी.“तो चलो हम अपना नव जीवन शुरू करने के पहले अपने परिवार वालों का आशीर्वाद ले लें. इतना ही नहीं, उसी मन्दिर में कलक्टर सुजाता का सम्मान-समारोह आयोजित किया जाएगा जहां कभी तुम जाने से भी डरती थीं. मुझे विश्वास है तुम मजबूर लडकियों की प्रेरणा बन कर उन्हें नव जीवन दे सकोगी.मै हर कदम पर तुम्हारे साथ हूँ.”सजल के मुख पर दृढ़ता थी.प्यार से सुजाता का हाथ थाम सजल ने उसके माथे पर झूल आई लट हटा चुम्बन अंकित कर दिया. उदित हो रहे सूर्य की रश्मियों ने सुजाता के लाज से लाल पड़े कपोलों की लालिमा और बढ़ा दी.

True Love Waits is the sad story of a girl and a boy in love. Erica and Kyle long to be together, but circumstances seem to be conspiring to keep them apart.True Love WaitsOne day, Erica was lying on her bed when she got a call from her boyfriend, Kyle.Kyle: Baby, we need to talk.Erica: What do u mean, Kyle?Kyle: Something has cropped up…Erica: What? What’s wrong? Is it bad?Kyle: I don’t want to hurt you, Baby…Erica suddenly got a sinking feeling in her stomach. Oh my God, she thought, I hope he doesn’t want to break up with me. I love him so much.Kyle: Baby, are you there?Erica: Yeah, I’m here. What is so important?Kyle: I’m not sure if I should say it… Erica: Well, you already brought it up, so please just tell me.Kyle: I’m leaving…Erica: Baby, what are you talking about? I don’t want you to leave me, I love you.Kyle: Not like that, I mean, I’m moving far away.Erica: Why? Your whole family lives here.Kyle: Well, my father is sending me away to a boarding school far away.Erica: I can’t believe this…All of a sudden, Erica’s father burst into her bedroom.“Erica!” he yelled furiously. “What did I tell you about talking to boys?! Get off the damn phone!!”Erica pretended to hang up and her father glared at her angrily for a few moments, then left, slamming her bedroom door behind him.Kyle: Wow, your father sounds really mad.Erica: You know how he gets… Anyway, I don’t want you to go.Kyle: Would you run away with me?Erica: Baby, you know I would. I would do anything for you, but I can’t… You don’t know what would happen if I did. My dad would kill me!Kyle: Its okay… I guess… I understand…Erica: I can’t believe what’s going on.Kyle: I need to give you something tonight because I am leaving on Flight 180 in the morning. I need to see you now.Erica: Ok, I’ll sneak out and meet you at the park.Kyle: Great. Meet you there in twenty minutes.The young lovers met each other at a nearby park. When Erica laid eyes on Kyle, she rushed over and gave him a big hug. He squeezed her tightly and kissed her on the cheek.“Here you go,” he said, handing her a note. “This is for you. I’ve got to go.” Erica was speechless and began to cry. Kyle tried to comfort her.“Baby, don’t cry,” he said, soothingly. “You know I love you. But I have to go.”“Okay,” replied Erica sadly and they both walked away.When she got home, Erica took out the note Kyle had given to her and began reading it.“Erica,You probably already know that I’m leaving. I knew it would be better if I wrote you a letter explaining the truth about how much I care about you.The truth is, is that I never loved you. I hate you so much. Don’t you ever forget that, Bitch. I never cared about you and never wanted to talk to you or be around you all the time. You really have no clue how much I really hate you. Now that I am leaving, I thought you should know that I hate you with every ounce of my being, Bitch. You were never good to me and you were never there for me when I needed you. I didn’t think I could ever hate someone as much as I hate you right now. I never want to see you again. For the rest of my life, I will never miss kissing you. I will never want to cuddle up like how we used to. I will never miss you and that is a promise. You never had my love, and I want you to remember that. You better keep this letter because this may be the last thing you have from me, Bitch. I hate you so much. I never want you to contact me… Goodbye.Kyle”Erica was so shocked that she broke down crying and threw the letter into the garbage. Her heart ached and it felt as if it would never stop hurting. She just wanted to die.The next day, Erica was still sad, depressed and lonely. She got a phone call from her best friend.Friend: How are you feeling?Erica: I still can’t believe this happened. I thought he loved me.Friend: Oh, with regards to that letter. Kyle left me a message last night. He told me to tell you to look in your jacket pocket or something…Erica: Umm… Okay. Hold on.Searching through the pockets of her jacket, Erica found a small, crumpled piece of paper. It read:“Baby, I hope you find this before you read my letter. I was afraid your dad might find it and read it, so I switched a few words… Here’s the code: Hate = Love, Never = Always, Bitch = Baby. I hope you didn’t take that seriously because I love you with all my heart and it was so hard to let you go. That’s why I wanted you to run away with me… Love, Kyle.”Overjoyed, she picked up the phone.Erica: Oh my God! It was all a big misunderstanding. His note was just a coded love letter! Kyle really does love me! He must have slipped the note into my pocket when he hugged me in the park. I can’t believe how stupid I’ve been!Friend: LOL! OK, I’m happy for you, but I’ve got to go. Call me later. Erica: Bye. I’ll be here waiting for my baby to call me!After hanging up the phone, Erica sat down on the sofa and turned on the TV. There was a breaking news flash.“An airplane has just crashed. Over 47 young boys died and there were no survivors. This is a tragedy we will never forget. The plane that crashed is Flight 180. It was on its way to an all-boys boarding school…”Erica stared at the TV, open-mouthed as the remote control fell from her hands. She couldn’t believe it. Kyle was dead and now, she had nothing left to live for. She began shaking and crying uncontrollably.An hour later, with tears streaming down her face, Erica went out to the garage and fetched a can of gasoline. She stood in the middle of her front garden and poured the gasoline over her head, then lit a match. She went up like a human torch.When her father came home from work, he discovered her charred remains in the driveway.Later that day, her phone rang but there was nobody there to answer it. Someone left a message on the answering machine:“Hi, Baby! It’s Kyle! I guess you’re not home. I just called to let you know that I’m alive. I missed my flight because I wanted to see you one last time. I hope you are not worried about me. Guess what? I had a talk with my dad and he said I don’t have to go to the boarding school after all. So, I am staying here for good. Isn’t that great?”